Book Title: Namaskar Mantrodadhi
Author(s): Abhaychandravijay
Publisher: Saujanya Seva Sangh

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Page 25
________________ प्रणवाक्षर ध्यान । --*-- प्रणव अक्षर पहेलोपभणीजे । प्रणव अक्षर सर्व सिद्धि दायक है । इसका बयान करते शास्त्र में कहा है कि हृदय कमल में निवास करने वाला शब्द जो ब्रह्म के कारण रूप स्वर व्यन्जन सहित परमेष्टि पद का वाचक है और मस्तक में रही हुई चन्द्रकला से झरते हुए अमृत रस से भींजे हुए महामन्त्र प्रणव याने ।।ॐ।। का कुम्भक से चिन्तवन करना स्तम्भन करने में पीला, वशीकरण करने में लाल, क्षोभ करने में परवाले की कान्ति जैसा, विद्वष में काला और कर्म का घात करने में चन्द्र की कान्ति जैसा ॐकार का ध्यान करना चाहिये । तीन लोक को पवित्र करने वाला पञ्च परमेष्टि नमस्कार मन्त्र को निरन्तर चिन्तवन करना। एस पंच नमस्कार, सर्व पाप प्रणाशनं । मंगलानांच सर्वेषां, प्रथमं जयति मंगलम् पञ्च परमेष्टि को नमस्कार करने वाले के सर्व पाप क्षय हो जाते हैं, क्योंकि सर्वमङ्गल में यह पहला मङ्गल है । अर्थात महामन्त्र है और यह मंचपद ॐकार दर्शक है अतः इनका जो ध्यान करता है, उसे मन वांछित फल की प्राप्ति होगी, इसलिए ॐकार शब्द सूचक परमेष्टि को नमस्कार करना कर्तव्य है। नाभिकमल में स्थित "अ" आकार ध्यावे, (सि) सिवर्ण मस्तक कलल में स्थित ध्यावे, (आ) आकार मुख कमल में स्थित कर ध्यावे, (उ) उकार हृदय कमल में स्थित ध्यावे, और (सा) साकार कण्ठ पिञ्जर में स्थित कर ध्यावे तो यह जाप सर्व Scanned by CamScanner

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