Book Title: Namaskar Mantrodadhi
Author(s): Abhaychandravijay
Publisher: Saujanya Seva Sangh

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Page 31
________________ ( ३० ) आसनों में से, पर्यङ्कासन, वीरासन, वज्रासन, पद्मासन, भद्रासन, दण्डासन, उत्कटिकासन, गौदोहिकासन और कायोत्सर्गासन, यह नौ प्रकार के आसन गृहस्थ सुगमता से कर सकते है। जिनमें पर्याङ्सन जिसे सखासन भी कहते हैं। यह इस तरह किया जाता है कि दोनों जङ्गा के नीचे का भाग पांव उपर कर बैठे याने पालखी लगाकर बैठे और दाहिना व बांया हाथ नाभि कमल के .. पास में ध्यान मुद्रा में रखे तो पर्यङ्कासन बन जाता है। दाहिना पांव बांयी जना पर व बाँया पांव दाहिनी जत्रा पर कर स्थिर बठे तो वीरासन बन जाता है। और वीरासन में ही दोनों पोठ की तरफ से लेकर दाहिने पांव का अंगुष्ट दाहिने हाथ से व बांये पाँव का अंगुष्ठ बांये हाथ से पकड़े तो वीरासन का वज्रासन बन जाता है। दोनों जङ्गा का परस्पर मध्य में सम्बन्ध कर बैठना इसको पद्मासन कहते हैं। पुरुष चिन्ह के प्रागे पांव के दोनों तलिये मिलाकर उनके ऊपर दोनों हाथ की उङ्गलियां परस्पर एक के साथ एक याने कर सम्मेलन करने के बाद दशों उङ्गलियां गिन सके इस प्रकार हाथ जोड़कर बैठना उसका नाम भद्रासन है। जिस आसन में बैठने से उङ्गलियां गुल्फ व जङ्गा भूमि से स्पर्श करे इस प्रकार पांव लम्बे कर बैठना उसको दण्डासन कहते हैं। गुदा और एडो के संयोग से वीरता पूर्वक बैठे जिसको उत्कटिकासन कहते हैं । गाय दूहने को बैठते हैं उस तरह बैठ ध्यान करना जिसको गौ दोहिकासन कहते हैं। खड़े-खडे दोनों भुजाओं को लम्बी कर घुटने की तरफ बढाना या बैठे बैठे काया की अपेक्षा नहीं रख कर ध्यान स्थित होना उसका नाम कायो. त्सर्गासन है। जिसको धार्मिक क्रिया में करने की प्रथा प्रचलित है। ध्यान करने को खड़े रहते है उस समय हाथों को बांईदाहिनी ओर ज्यादे फलाना नहीं चाहिये सीधे हाथ रखने Scanned by CamScanner

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