Book Title: Namaskar Mantrodadhi
Author(s): Abhaychandravijay
Publisher: Saujanya Seva Sangh

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Page 39
________________ ( ३८ ) ध्यानी, योगी स्थिर चित्त से लय लगाता हुवा इस महातत्त्व का ध्यान करता है। तो फल स्वरूप प्रानन्द और सम्पत्ति की भूमि रूप मोक्ष लक्ष्मी उसके पास आकर खड़ी हो जाती है। रेफ बिन्दू और कला रहित शुभ्राक्षर ।।ह।। का ध्यान करते हैं। बाद में यही अक्षर अनक्षरता को प्राप्त हया हो जो बोलने में नहीं आवे इस प्रकार इसका चिन्तवन करे । चन्द्रमा की कला जैसे सूक्ष्म आकार वाले, सूर्य जैसे प्रकाशमान अनाहत नामके देवको स्फूरायमान होता हो इस प्रकार चिन्तवन करना । और बाद में अनुक्रम से केशके अग्रभाग जैसा सूक्ष्म चिन्तवन करना और क्षण वार जगत को अव्यक्त ज्योति वाला चिन्तवन करना । लक्षसे मन को हटाया जाय तो अलक्ष में स्थिर करते हवे अनुक्रमसे अक्षय इन्द्रियों से अगोचर ऐसी ज्योति प्रगट होती है। इस प्रकार लक्ष के आलम्बन से अलक्ष्य भाव प्रकाशित किया हो तो उससे निश्चल मन वाले योगी ध्यानी का इच्छित सिद्ध होता है। योग शास्त्र में कहा है कि ध्यान करते समय पाठ पांखडी के कमल का चिन्तवन करे मूलमें सप्ताक्षरी मंत्र नमो अरिहंताणं का ध्यान करे बाद में सिद्धादिक चारों पद अनक्रम से चारों दिशा के कमल पत्त-पांखडी में स्थापित करे और चारों विदिशा चूलिका में चारों पद ज्ञान दर्शनादि चिन्तवन कर ध्यान की लय लगावे तो महान लाभ प्राप्त होता है। इसकी अाराधना करने वाले परम पुरुष महालक्ष्मी प्राप्त करके तीन लोक के पूजनीय हो जाते हैं। पञ्च परमेष्टि विद्या गुरुपञ्चक के नाम से उत्पन्न हुई जिसको 'षोडशाक्षरी" विद्या कहते हैं याने Scanned by CamScanner

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