Book Title: Namaskar Mantrodadhi
Author(s): Abhaychandravijay
Publisher: Saujanya Seva Sangh

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Page 37
________________ प, फ, ब, भ, म तक चिन्तवन करना। उसके बाद मुख कमल में अाठ पत्र वाले कमल के अन्दर बाकी के आठ वर्ण, य, र, ल, व, श, ष, स, ह, का चिन्तवन करना। इस प्रकार चिन्तवन करने से श्रुतपारगामी हो जाते हैं । इसका सविस्तार विधान समझने योग्य है। जो इसका ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं और अनादि सिद्धि वर्णात्मक ध्यान यथा विधि करते रहते हैं उनको अल्प समय में हो, गया, आया, हा, होने वाला, जीवन, मरण, शुभ, अशुभ आदि वृत्तान्त जान लेने का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। । नाभिकन्द के नीचे आठ वर्ग के अ, क, च, ट, त, प, य, श, अक्षर वाले आठ पत्तों सहित स्वर की पंक्ति युक्त केसरा सहित मनोहर पाठ पांखडी वाला कमल चिन्तवन करे। सर्व पत्रों को सन्धियां सिद्ध पुरुषों की स्तुति से शोभित करना । सर्व पत्रों के अग्र भाग में प्रणव व माया ।। ॐ ह्रीं ।। से पवित्र बनाना । उन कमल के मध्य में रेफ से () आक्रान्त कलाबिन्दु । ) से रम्य स्फटिक जैसा निर्मल आद्यवर्ण ।। सहित अन्त्यवर्णाक्षर ।।।। स्थापन करना “अहँ" यह पद प्राण प्रान्त को स्पर्श करने वाले को पवित्र करता हुआ, ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत, सूक्ष्म और अति सूक्ष्म ऐसा उच्चारण होगा। उसके बाद नाभिकी, कण्ठकी, और हृदय को, घंटिकादि ग्रन्थियों को अति सूक्ष्म ध्वनि से विदारण करता हुआ मध्य मार्ग से वहन करता हुआ चिन्तवन करना । और विन्दुमेंसे तप्त कला द्वारा निकलते दूध जैसे गौर अमृत के कल्लोलों से अन्तरात्मा को भींजता हुआ चिन्तवन कर, अमृत सरोवर में उत्पन्न होने वाले सोलह पांखड़ी के सोलह स्वर वाले कमल के मध्य में आत्मा को स्थापन कर उसमें सोलह विद्यादेवियों की स्थापना करना। Scanned by CamScanner

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