Book Title: Namaskar Mantrodadhi
Author(s): Abhaychandravijay
Publisher: Saujanya Seva Sangh

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Page 35
________________ ( ३४ ) दूसरी "आग्नेयी" धारणा का स्वरूप बताते हुये कहा है कि नाभि के अन्दर सोलह पांखड़ी युक्त कमल पुष्प की योजना करे, और उस कमल की कणिकाओं में "अहँ" महामन्त्र और दूसरे प्रत्येक पत्र में स्वर को पंक्ति स्थापन करे । रेफ बिन्दू को कला सहित महा-मन्त्र में जो "ह्र" अक्षर उसके रेफ में से धीरे-धीरे निकलती हुई धूम्र रेखा का चिन्तवन करे । उसमें अग्नि-कण की सन्तति अर्थात् चिनगारियां चिन्तवन कर बाद में अनेक ज्वाला का चिन्तवन करना, और उस ज्वाला के समूह से हृदय में रहे हए कमल को जलाना । इस तरह घाती अघाती आठों कर्म की रचना वाले आठ पत्र यक्त अधोमुख वाले कमल को महामन्त्र के ध्यान से उत्पन्न होने वाली ज्वाला जला देती है । इस तरह चिन्तवन करने के बाद शरीर से बाहर सुलगती हुई अग्नि का त्रिकोण अग्निकुण्ड चिन्तवन कर उसके अन्त में स्वस्तिक लाञ्छित अग्नि बीजयुक्त चिन्तवन करना । इस प्रकार महामन्त्र के ध्यान से उत्पन्न की हुई अग्नि से अर्थात अग्नि ज्वाला से शरीर और कमल को जलाकर भस्मसात् कर शान्त होना, इसी का नाम आग्नेयी धारणा है जो ध्यान द्वारा चिन्तवन की जाती है । तीसरी "मारूती" धारणा का स्वरूप इस प्रकार है कि तीन । भुवन के विस्तार जैसा पर्वतादि को चलायमान करने वाला समुद्र को क्षोभ प्राप्त कराने वाले वायु का चिन्तवन करना और भस्मरज को उस वायु से शीघ्र उडाने के बाद विशेष ध्यान के अभ्यासी को चाहिये कि उस वायु को शान्त बना देवे । इस प्रकार की क्रिया को मारुती धारणा कहते हैं। चौथो “ वारुणी " धारणा का स्वरूप इस प्रकार है कि अमृत समान बरसात बरसता हो, मेघमाला से व्याप्त हो ऐसे आकाश चिन्तवन करना, बाद में अर्द्ध चन्द्राकारयुक्त वरुण बीज सहित Scanned by CamScanner

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