Book Title: Namaskar Mantrodadhi
Author(s): Abhaychandravijay
Publisher: Saujanya Seva Sangh

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Page 44
________________ ( ४३ ) वचन हैं । यह मन्त्र जन्म जरा मृत्यु रूप दावानल को शान्त करने में न ये मेघ के समान है । अत: सिद्ध चक्र को गुरु गम से ज्ञात करके ध्यान करना चाहिये। नाभि कमल में रहे हुये सर्व व्यापि ।।अ।। अकार का चिन्तवन करना, मस्तक कमल में रहे हए ।। सि ।। वर्ण का चिन्तवन करना । मुख कमल में ।। आ ।। आकार चिन्तवन करना । हृदय कमल में ।। उ ।। उकार और कण्ठ पिञ्जर में ।। सा ।। साकार चिन्तवन करना और भी कल्याणकारी बीजाक्षर हैं उनका चिन्तवन करना चाहिये, और श्रुतरूप समुद्र में से जिनकी उत्पत्ति है ऐसे तमाम अक्षर पद आदि का ध्यान किया हो तो मोक्ष पद की सिद्धि प्राप्त होती है । ___ ध्यान करने वाले को चाहिये कि राग रहित होकर ध्यान करे तो अवश्य फलदायी होगा। रुपस्थ ध्येय स्वरूप जिनके सामने मोक्ष लक्ष्मो तैयार है। और सर्व कर्म का नाश करने में समर्थ हैं, चतुर्मुख वाले समस्त भुवन को अभय दान देने वाले, तीन मण्डल जैसे श्वेत तीन छत्र सहित शोभायमान, सर्य को विटम्बना करता भामण्डल जिनके पीछे झगझगाट कर रहा है, दिव्य देव दुन्दुभि के सुहावने नाद-गीत-गान के साम्राज्यसम्पत्ति वाले, भ्रमर शब्दों के झङ्कार से वाचाल अशोक वक्ष से शोभायमान, सिंहासन पर विराजमान, जिनके ऊपर चामर ढल रहे हैं, सुरासुर नमस्कार करते हैं, सुरासुर के रत्न जडित मकट कुण्डल की कान्ति से नमस्कार के समय पांव Scanned by CamScanner

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