Book Title: Mrugaputra Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 3
________________ मृगापुत्र चरित्रम् // 2 // SASRECOR 14 // 2 // बलश्रीस्तत्सुतो लोके / मृगापुत्रेतिविश्रुतः // युवराजो भृशं पित्रोः / प्रियः शमितशात्रवः // 2 // अर्थः–ते राजानो बलश्री नामे पुत्र हतो, परंतु लोकमां तेनुं " मृगापुत्र" नाम प्रसिद्ध हतुं, वळी शांत कयों छे शत्रुभोनो समूह | जेणे एवो ते युवराज मात पिताने अति प्रिय हतो. // 2 // सदा स्वमंदिरोदारे / स्वकीयावासमंदिरे // क्रीडतेस्म सम स्त्रीभिः / स दोगुंदकदेववत् // 3 // अर्थः-ते मृगापुत्र हमेशां देव विमान सरखा मनोहर एवा पोताना आवासमंदिरमा दोगुंदक देवनी पेठे स्त्रीओ साथे विलास | करतो हतो. // 3 // अन्यदा स गवाक्षस्थः / पुरं पश्यन्ननेकधा // जितेंद्रियं मुनि कंचि-ददर्श तपसा कृशं // 4 // अर्थः-एक दिवसे ते मृगापुत्र झरुखामां चेसी अनेक प्रकारनी नगररचना जोइ रह्यो हतो, एवामां तेणे जीतेल छे इंद्रियो जेणे, 13/ तथा तपथी डुबळा शरीरवाळा कोइक मुनिने जोया. // 4 // विलोक्यैनं मृगापुत्र-श्चिंतये दिति चेतसि // मन्येऽहमीदृशं रूपं / पुरा दृष्टं मया रयात् // 5 // अर्थः–ते मुनिराजने जोइने ते मृगापुत्र तुरत पोताना मनमा एम विचारवा लाग्यो के, हुं धारु छ के, में आवं स्वरूप पूर्वे (क्यांक) जोयु छे. // 5 // unratrasur MS. - CASE P Jun Gun Aaradh

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