Book Title: Mrugaputra Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगापुत्र सदा कापोतिकावृत्तिः। केशलोचश्च दारुणः॥धायं ब्रह्मव्रतं घोरं / सर्वदैतन्महात्मना // 33 // 8 चरित्रम् अर्थः-वळी महात्मा मुनिने हमेशां कापोतवृत्तिः (आहारमाटे भमरानी पेठे,माधुकरी वृत्ति) धारण करवी पडे छे, तथा केशोनो लोच करवोः ए.पण भयंकर छे, वळी हमेशां ते तीव्र ब्रह्मचर्यव्रत पाळवानुं छे. // 33 // सुकुमालतनुः पुत्र / ततस्त्वं हि सुखोचितः // श्रामण्यमीहश कंतु नाल भवसि सर्वदा // 34 // / अर्थः-वळी हे वत्स! तुं सुकुमाल शरीरवाळो छो, तेथी खरेखर तुं तो मुख भोगववाने लायक छो, अने तेटलामाटेज तुं आवं. ( मुश्केल चारित्र हमेशां पालवाने समर्थ थइ शकीश.नही. // 34 // अविश्रमो भवेद्याव-ज्जीवं प्रशमिनां पुनः // गुरुर्गुणभरो लोह-भरक्हुर्वहस्तव // 35 // अर्थः-वळी मुनिओने छेक जींदगीपर्यंत विश्राम मळी शकतो नथी, अने तेथी लोखंडना भारनी पेठे गुणीनो म्होटो भार तारे उचकवो मुश्केली भर्यो छे. / / 35 / / गंगाश्रोतः पुरो यानं / दुस्तरोऽब्धिरिवाथवा // बाहुभ्यां श्रमणत्वं हि / तथा वत्स सुदुष्करं // 36 // है अर्थः-वळी हे वत्स जेम गंगानदीने सामे पूरे जवु, अथवा चे हाथे महासागर तरवो मुश्केल छे, तेम मुनिपणुं पाळवू पण मुश्केलीमधु छः // 36 // SACCESSORSCARॐ2 P. P atrasuri MS. Jun Gun AaradhEE

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