Book Title: Mrugaputra Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 18
________________ मृगापुत्र चरित्रम् स ताम्रादीन्यति तप्तानि / पायितो विरसं रसन् // भृशं कलकलारावं / कुर्वन्नेवासुरै रहं // 66 // अर्थः-वळी अत्यंत विलाप करता एवा मने ते परमाधामीओए अति उकाळेला उनां कलकलता तांचाआदिक धातुओंना रसो पायाछे प्रारभवे तव मांसानि / प्रियाणि मदिरास्तथा // इति संस्मार्य महा-मांसानि रूधिराणि च // 67 // गृहीत्वा वह्रिवर्णानि / कृत्वा च त्रिदशैरिमैः // खादितः पायितश्चाहं / रुदन्नपि कुकर्मभिः॥ ६८.॥युग्मं॥ अर्थः-पूर्वभवमा तने मांस अने मदिरा (खावा पीवामाटे.) बहु व्हालां हता, एम याद करावीने मरां कुकर्मोने लीवे मारांज शरीरमांथी मांस अने रुधिर कहाडीने, तथा तेने अग्नि सरखां करीने, ते परमाधामी देवोए मने रोवरावीने पण खवराव्यां अने पीवराव्यां छे. // .67 // .68 / / युग्मं // .. . प्रागजन्मनि त्वया मूढ / परस्त्रीसंगमः कृतः // परमाधार्मिकदेवे-निर्भत्स्येति पुनः पुनः // 69 // तप्तपुतलिकामग्नि-वर्णां कृत्वा तया समं // आलिंगनानि बहुधा / कारितोऽहं च दीनवाग् ॥७॥युग्मं॥ अर्थ:-अरें मूढ! ते पूर्वजन्ममां परस्त्रीनो संग करेल छे, एम ते परमाधामिक देवोए वारंवार मने निभ्रं छीने, // 69 // (लोखंडनी) पुतळीने अग्निमां लालचोळ तपावीने ते पुतळीसाथे, दीन वचनों बोलता एवा पण मने घणी घणीवार अलिंगन कराव्यु // 70 // // / P unratnasur MS. Jun Gun Aarad

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