Book Title: Mrugaputra Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // 28 // Serving Jin Shasan CommeRESS SEEIGISISISISTS S ITITIO // श्रीजिनाय नमः // p-13419 // श्रीमृगापुत्रचरित्रम् // 22-12-03 (मूळ अने भाषान्तर सहित) garo (कर्ता-शुभवर्धनगणि) भाषांतर कर्त्ता तथा छपात्री प्रसिद्ध कर्ता-पण्डित श्रावक हीरालाल हंसराज [जामनगरवाळा] 110938 ayanmandinskobatirth.org सने 1931 संवत् 1987. किंमत रु. 0-8-0 श्रीजैनभास्करोदय प्रिन्टिंग प्रेसमां छाप्यु. जामनगर. 082080@@Debboob@30 PPA Gunratnasun MS Jun Gun Aaradhak Trust Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगापुत्र SEASEASIR // श्रीजिनाय नमः॥ // श्रीचारित्रविजयगुरुभ्यो नमः // // अथ श्रीमगापुत्रचरित्रं प्रारभ्यते // ( गूर्जरभाषांतरोपेतं ) (मूळकर्ता-श्रीशुभवर्धनगणी) भषांतर कर्ता तथा छपावी प्रसिद्ध करनार-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगरवाळा) सुग्रीवनगरेऽत्रैव / भरते स्वःसमे श्रिया // बलभद्रोऽभवद्राजा। मृगेत्याख्या च तत्प्रिया // 1 // अर्थः-लक्ष्मीवढे करीने देवलोक सरखा आज भरतक्षेत्रमा सुग्रीवनामना नगरमा बलभद्रनामे राजा इतो, अने तेनी मृगानामनी राणी हती // 1 // Gunratnasur MS Jun Gun Aarad Rust Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगापुत्र चरित्रम् // 2 // SASRECOR 14 // 2 // बलश्रीस्तत्सुतो लोके / मृगापुत्रेतिविश्रुतः // युवराजो भृशं पित्रोः / प्रियः शमितशात्रवः // 2 // अर्थः–ते राजानो बलश्री नामे पुत्र हतो, परंतु लोकमां तेनुं " मृगापुत्र" नाम प्रसिद्ध हतुं, वळी शांत कयों छे शत्रुभोनो समूह | जेणे एवो ते युवराज मात पिताने अति प्रिय हतो. // 2 // सदा स्वमंदिरोदारे / स्वकीयावासमंदिरे // क्रीडतेस्म सम स्त्रीभिः / स दोगुंदकदेववत् // 3 // अर्थः-ते मृगापुत्र हमेशां देव विमान सरखा मनोहर एवा पोताना आवासमंदिरमा दोगुंदक देवनी पेठे स्त्रीओ साथे विलास | करतो हतो. // 3 // अन्यदा स गवाक्षस्थः / पुरं पश्यन्ननेकधा // जितेंद्रियं मुनि कंचि-ददर्श तपसा कृशं // 4 // अर्थः-एक दिवसे ते मृगापुत्र झरुखामां चेसी अनेक प्रकारनी नगररचना जोइ रह्यो हतो, एवामां तेणे जीतेल छे इंद्रियो जेणे, 13/ तथा तपथी डुबळा शरीरवाळा कोइक मुनिने जोया. // 4 // विलोक्यैनं मृगापुत्र-श्चिंतये दिति चेतसि // मन्येऽहमीदृशं रूपं / पुरा दृष्टं मया रयात् // 5 // अर्थः–ते मुनिराजने जोइने ते मृगापुत्र तुरत पोताना मनमा एम विचारवा लाग्यो के, हुं धारु छ के, में आवं स्वरूप पूर्वे (क्यांक) जोयु छे. // 5 // unratrasur MS. - CASE P Jun Gun Aaradh Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगापुत्र // 3 // चरित्रम् इति चिंतयतस्तस्य / साधुदर्शनयोगतः // मूर्छा गतस्य तरकालं / जातिस्मृतिरभृत्परा // 6 // अर्थः-ते मुनिराजने जोवाथी एम विचारता, अने तेथी तत्काल मूर्छा पामेला एवा ते मृगापुत्रने श्रेय जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न थयुं चिंतयेच्च मया पूर्व / श्रामण्यमनुपालितं // देवीभृय ततो भोगा // भुक्ताश्च विविधा मया // 7 // अर्थः-तेथी तेणे विचार्यु के पूर्व चरित्र पाळ्युं छे, अने तेथी देवपणे उत्पन्न थइने में नानापकारना भोगो भोगव्या छे, 1905 | तदरज्यन् स भोगेषु / किंतु रज्यन् महाव्रते // इदं वाक्यमुपागम्य / पितरौ कुमरो जगौ // 8 // अर्थः-तेथी भोगोमाटे नाखुश थयेलो परंतु चारित्र लेवामाटे खुशी थयेलो ते मृगापुत्र माता पिता पासे आवीने आवीरीतनु वचन बोलबा लाग्यो के, // 8 // महाव्रतानि पंचैव / श्रुतानि नरकेषु च // दुःखं सोढं मया हंत / नृतिर्यक्षु तथामितं // 9 // | अर्थः- महाव्रतो तो पांचज सांभळेला छे, परंतु अरेरे ! नरकोमां, मनुष्यभवोमां तथा तिर्यंचोना भवोमां में प्रमाण विनानुं दुःख 4 सहन कर्यु छे. // 9 // निवृत्तोऽस्मि ततोऽनंत दुखःमूलाद्भवादहं // पितरावनुजानीतं / तद गृहीष्यामि संयम // 10 // अर्थः-माटे हवे तो अनंत दुःखोना मूल रूप संसारथी हुं कंटाळी गयो छु, अने तेथी हवे तो हुँ चारित्र लेइश. माटे हे माता पिताजी! ते माटे मने अनुज्ञा आपो. // 10 // %8CSRX % P. Gunanasur MS Jun Gun Aaradh Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रम् मातः पितर्मया भोगा। भुक्ता विषफलोपमाः॥ मुखेऽतिमधुराः प्रांते। कटुका दुःखदायिनः॥११॥ मृगापुत्र अर्थः-हे ! माता पिताजी ! में झेरी फल सरखा (घगा) भोगो भोगव्या छे, के जे मुखमा लेतां अति मधुरा लागे छे, परंतु // 4 // परिणामे कडवा अने दुःख देनारा छे. // 11 // अनित्यमिदमंगं मे-ऽशुचिजं चाशुचिभृतं // जीवस्याऽशाश्वतं स्थानं / दुःखक्लेशैकभाजनं // 12 // | अर्थः- आ मारुं शरीर अशुचिमाथी उत्पन्न थयेलं, अने आशुचिथीन भरेलु तथा अनित्य छे. तेमज ते आ जीवने रहेवा पाटे क्षणिक स्थान सरखं, अने दुःखो तथा क्लेशोना पात्रमरखं छे. // 12 // विनश्वरे रति नांगे / प्राप्तोऽस्मि चितरौ क्वचित् // जलबुबुदसंकाशे। त्यक्तव्येऽवश्यमुच्चकैः // 13 // | अर्थ:-हे माता पिताजी' जलना परपोटानी पेठे नाशवंत, तथा अवश्य तजवा लायक एवां आ शरीरथी हुँ क्यांय पण सारीरीते सुख पाम्यो नथी. // 13 // आधिव्याधिगृहे जाग्र-जराजन्ममृतिव्यथे / असारे मनुजत्वे हि / न लेभे रतिमुच्चकैः // 14 // है अर्थः-आधि अने व्याधिना स्थानरूप, वृद्धावस्था, जन्म तथा मरणनी पीडावाळा एवा आ असार मनुष्यभवमां पण खरेखर हुँ सारी रीते सुख पाम्यो नथी. // 14 // Jun Gun Aarathicolet Plantatnasun MS REA%A5-%ARA . KI Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A-% मृगापुत्र Aवासका चातुर्गतिकः संसारः / क्लेशाधारः शरीरिणां // क्लिश्यंति जंतवो यत्रा-नंतदःखैर्निरंतरं // 15 // अर्थः-आ चारे गतिओवाळो संसार प्राणीओने क्लेश उपजावनारो छे, के जेमां पाणीओ निरतर अनंता दुःखो वडे क्लेश पाम्या करे छे, अवश्यमेव गंतव्यं / त्यक्त्वा देहधनादिकं // धर्महीनस्य संसारो। भवेददःखपदं ततः // 16 // अर्थः-वळी आ शरीर तथा धन आदिक तजीने (एकदिवस) अवश्य चाल्या जवानुछे, अने तेथी धर्मरहित माणीने (आ) संसार दुःखोना स्थानरूप थइ पडे छे. // 16 // अपाथे यः पुनर्मागं / महांतं यः प्रपद्यते // सोऽपि गच्छन् क्षुधा तृष्णा-पीडितो दुःखभाग्भवेत् // 17 // अर्थः-वळी जे माणस भातुं लीधाविना म्होटी मुसाफरीये जाय छे, ते पण चालताथको क्षुधातृषाथी पीडाइने दुःखी थाय छे. अकृत्वा धर्ममेवं यो जंतुर्याति भवांतरं // स गच्छन् स्यान्महा दुःखी रोगशोकादिपीडितः॥१८॥ अर्थः-एवीरीते जे प्राणी धर्म कर्याबिना परभवमा जाप छे, ते जतोथको रोग अने शोकआदिकथी पीडित थइने अतिदुःखी / थाय छे. // 18 // यो महांतमथा ध्वानं / सपाथेयः श्रयेन्नरः // क्षुपिपासा विमुक्तः सन् / ब्रजन्नति सुखी भवेत् // 19 // अर्थः-बळी जे पुरुष भातुं लेइने म्होटी मुसाफरीये जाय छे, ते क्षुधा अने तृषाथी मुक्त थइ जतोथको अत्यंत सुखी थाय छे. P u ntatasur M.S. Jun Gun Aaradh Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ STD मृगापुत्र चरित्रम् - कृत्वाहद्धर्ममेवं यः / प्रयात्यन्य भवं भवी // आधि व्याधि विनिर्मुक्त-स्तत्र गच्छन् सुखी भवेत् // 20 // अर्थः-एवीरीते जे भव्य माणस जैनधर्म आचरीने परभवमा जाय छे, ते त्यां जतोयको आधिव्याधिथी मुक्त थइने सुखी ॥६॥माथाय छे. // 20 // लग्ने यथाग्नौ स्वावासे / तत्पतिः सारवस्तुनः // करोति कर्षणं नूनं / मुक्त्वाऽसारपरिग्रहं // 21 // अर्थः-पोताना घरमा आग लागवाथी तेनो मालीक जेम खरेखर असार वस्तुओने त जीने उमदी वस्तुओ बहार कहाडी लीये छे, // 21 // एवं लोके जरामृत्य्वा-द्यग्निना व्याकुली कृते // आत्मानं तारयिष्यामि / पूज्यौ युष्मन्निदेशतः // 22 // अर्थः-एवीरीते हे पूज्यौ ! जरा तथा मृत्युआदिक रूप अग्निथी व्याकुल थयेला आ लोकमांथी, आपनी आज्ञावडे हुं पण मारा आत्मानो उद्धार करीश. // 22 // मृगापुत्रेण तेनेति / कथिते पितरावदः॥ प्रजल्पतश्चिरं वत्स / श्रामण्यमति दुश्चरं // 23 // अर्थ:-ते मृगापुत्रे एम कहेवाथी तेना मातापिता तेने एम कहेचा लाग्या के, हे वत्स ! लांबा काळसुधी चारित्र पाळबुं बहु मुश्केल छे // 23 // SSSSSSSS %-964955 Gunratnasarl M.S Jun Gun Aarad lust Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगापुत्र चरित्रम् ARSHISHRA 8 भिक्षोः शिलांगरूपाणां / गुणानां च दिवानिशं // अष्टादश सहस्राणि / धारणीयानि साधुभिः // 24 // अर्थः-केमके साधुओने हमेशां रातदिवस भिक्षुकना शीलसंबंधी अढार हजार भेदोरूपी गुणोने धारण करवा पडे छे. // 24 // समताखिलजीवेषु / शत्रौ मित्रेऽथ दुर्जने // दुःकरा सर्वदा प्राणा-तिपातविरतिर्मुनेः // 25 // अर्थः-वळी मुनिने शत्रु, मित्र तथा दुर्जन, एम सर्व जीवोमते समता राखवी पडे छे, तेमज हमेशां जीवहिंसाथी दूर रहेवा महा मुश्केल छे. // 25 // अप्रमत्ततया नित्यं / मृषावादविवजनं / दुःकरं खलु वक्तव्यं / सावधानतया हितं // 26 // अर्थः-वळी हमेशा प्रमादरहित थइने मृषावचनना त्यागपूर्वक सावधानपणे हितकारी वचन बोलवान खरेखर मुश्केल छे. // 26 // तृणमात्रस्याप्यदत्तस्य / वर्जनं वत्स दुष्करं // अनवयैषणीयस्या-हारस्य ग्रहणं तथा // 27 // अर्थः-वळी हे वत्स ! फक्त तणखलां जेवी पण अणदीधेली वस्तु लेवानो त्याग, तथा निर्दोष अने योग्य आहार ग्रहण करवानु पण मुश्केल छे. // 27 // अब्रह्मचर्यविरति-भुक्तभोगस्य सद्यतेः // सुदुष्करं तथा ब्रह्म-व्रतधारणमन्वहं // 28 // अर्थः-वळी पूर्वावस्थामां (गृहस्थीपणापां) जेण भोगो भोगवेला छे, एवा उत्तम यतिने (पण) स्त्रीविलासथी विरक्त थइने हमेशां ब्रह्मचर्य पालवु, ते पण महा मुश्केल छे. // 28 // // 7 // Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhi Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 मृगापुत्र // 8 // // 8 // दुष्करं धनधान्यादि-परिग्रहविवर्जनं // निर्ममत्वाखिलारंभ-परित्यागौ च सर्वदा // 29 // अर्थः-वळी हमेशां धन तथा धान्य आदिक परिग्रहनो त्याग करवो, तेमज ममतानो त्याग करीने सर्व आरंभोनो त्याग करवो है / चरित्रम् न पण मुश्केल छे. // 29 // रात्रौ चतुर्विधाहार-परित्यागस्तु दुष्करः // सर्वथैव न कर्तव्य-स्तथा संनिधिसंचयः // 30 // अर्थ-वळी रात्रिए चारे प्रकारना आहारनो त्याग करवो पण मुश्केल छे, तेमज सर्वथा प्रकारे कोइ पण वस्तुओ पासे संयम राखी शकाशे नही // 30 // क्षुत्पिपासातिशीतोषणा-दंशमशकवेदनाः // पराक्रोशा दुःखशय्या। तृणस्पों मलस्तथा // 31 // / ताडनं तर्जनं चैव / वधबंधा सुदुस्सहौ // भिक्षाचर्या सदा यांचा / लाभा भावश्च दुःसहः ॥३२॥युग्मं॥ अर्थः क्षुधा, तृषा, अतिठंडी, अतिताप, दंश, अने मच्छरनी पीडा, बीजा क्रोधनां वचनो, शरीरने कष्ट उपजे एवी शय्या अथवा उपाश्रय, डाभआदिक शरीरमा हुंचे एवां तृणोनो स्पर्श, शरीरसंबंधी मेल, // 32 // तेमज ताडन, तर्जना, वध अने बंधन पण सहन करवां मुश्केल छे, तेमज हमेशां भिक्षामाटे भमवं, याचना करवी, अने जोइती वस्तु मळवानो अभाव, ए सघळा परीषहो सहन करवा मुश्केल छे. // 32 // युग्मं // .. 442654587-%ॐॐल PELAGunratnasuri MLS Jun Gun Aarad Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगापुत्र सदा कापोतिकावृत्तिः। केशलोचश्च दारुणः॥धायं ब्रह्मव्रतं घोरं / सर्वदैतन्महात्मना // 33 // 8 चरित्रम् अर्थः-वळी महात्मा मुनिने हमेशां कापोतवृत्तिः (आहारमाटे भमरानी पेठे,माधुकरी वृत्ति) धारण करवी पडे छे, तथा केशोनो लोच करवोः ए.पण भयंकर छे, वळी हमेशां ते तीव्र ब्रह्मचर्यव्रत पाळवानुं छे. // 33 // सुकुमालतनुः पुत्र / ततस्त्वं हि सुखोचितः // श्रामण्यमीहश कंतु नाल भवसि सर्वदा // 34 // / अर्थः-वळी हे वत्स! तुं सुकुमाल शरीरवाळो छो, तेथी खरेखर तुं तो मुख भोगववाने लायक छो, अने तेटलामाटेज तुं आवं. ( मुश्केल चारित्र हमेशां पालवाने समर्थ थइ शकीश.नही. // 34 // अविश्रमो भवेद्याव-ज्जीवं प्रशमिनां पुनः // गुरुर्गुणभरो लोह-भरक्हुर्वहस्तव // 35 // अर्थः-वळी मुनिओने छेक जींदगीपर्यंत विश्राम मळी शकतो नथी, अने तेथी लोखंडना भारनी पेठे गुणीनो म्होटो भार तारे उचकवो मुश्केली भर्यो छे. / / 35 / / गंगाश्रोतः पुरो यानं / दुस्तरोऽब्धिरिवाथवा // बाहुभ्यां श्रमणत्वं हि / तथा वत्स सुदुष्करं // 36 // है अर्थः-वळी हे वत्स जेम गंगानदीने सामे पूरे जवु, अथवा चे हाथे महासागर तरवो मुश्केल छे, तेम मुनिपणुं पाळवू पण मुश्केलीमधु छः // 36 // SACCESSORSCARॐ2 P. P atrasuri MS. Jun Gun AaradhEE Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगापुत्र SAE // 10 // // 10 // ISRASASEX असिधारा यथा वत्स / नर्तकानां सुदुश्चरा // तथा निरतिचारं च / दुश्चरं चरणं मतं // 37 // अर्थः-वळी हे वत्स! नृत्य करनाराभीने खड्गनी धारापर चालवु जेम मुश्केलीभर्यु छे, तेम अतिचार रहित चारित्र पालयान चरित्रम् कार्य पण मुश्केली भर्यु जाण्युछे. // 37 // ...: पंचमहाव्रताचार-पालनं गदितं बुधैः // दुष्करं लोहचनक-दंतचर्वणसन्निभं // 38 // अर्थः-वळी आ पांचे महाव्रतोना आचार पालबार्नु कार्य विद्वानोए दांतोवडे लोखंडना चणा चाववासरखं मुश्केल कहेलुं छे. 18/ 4 वह्निज्वाला यथा दीप्ताः / पातुं स्यादतिदुष्करा // तथा सुदुष्करं कर्तुं / श्रामण्यं यौवने सति // 39 // __ अर्थः-जे प्रकटी निकळेली अग्निनी ज्वालाओने पीवी अतिमुश्केल छे, तेमयौवन वयमा मुनिपणु पालवु वधारे मुश्केली -% A | यथा भर्तुं महावातैः / कुत्थलः खल्लु दुष्करः // श्रमणत्वं तथा धतुं / क्लीबेन सुत दुष्करं // 40 // अर्थः-वलो हे वत्स! खरेखर जेम महान् वायुवडे कथोळो भरवो मुश्केल छे, तेम निर्माल्य पोपला पुरुषने चारित्र पालवु / | महा मुश्केल छे.॥४०॥ Jun Gun Aaradh P untatasur MS. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -45 मृगापुत्र / यथा तोलयितुं मेरु-स्तुलया किल दुष्करः // तथा विशुद्धं निःशंकं / श्रामण्यं पुत्र दुश्चरं // 41 // 6 चरित्रम् अर्थः-वळी हे वत्स! खरेखर मेरुपर्वतने कांटामां नाखी तोलदो जेम मुश्केल छे, तेम निःशंकपणे निर्मल चारित्र पालवु महा। // 11 // मुश्केल छे. // 41 // भुजाभ्यां च यथांभोधि-स्तरितुं न हि शक्यते // तथा प्रशमपाथाधि-रप्रशांतैनरैरलं // 42 // अर्थः-वळी वे हाथवडे जेम महासागर तरी शकातो नथी, तेम शांति रहित हृदयवाळा पुरुषो चारित्रपीरू महासागर तरवाने समर्थ थता नथी. // 42 // भुंक्ष्व मानुष्यकान् भोगां-स्ततस्त्वं पंचलक्षणान् // वार्धक्ये भुक्तभोगः सन्। वत्स चारित्रमाघरेः॥४३॥ अर्थः-माटे हे वत्स! तुं आ मनुष्यभवसंबंधि (पांचे इंद्रियोना) पांचे प्रकारना भोगो भोगवी अने एरीते भोगो भोगव्यावाद वृद्धावस्थामां तुं चारित्रनो स्वीकार करजे? // 43 / / पित्रोस्तदुक्तमाकर्ण्य / मृगापुत्रेऽब्रवीदिदं // निःस्पृहस्येह लाके मे। न किंचिदपि दुष्करं // 44 // अर्थः-माता पिताना एवां वचनो सांभळीने मृगापुत्रे एम कह्यु के, (हे पूज्यौ! ) आ संसारमा कोइ पण प्रकारनी लालचथी, रहित थयेला एवा मने ( चारित्र लेवामां ) कंइ पण ( हवे ) मुश्केली नथी. // 44 // // 11 // M unratnasun M.S. Jun Gun Aaradha Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगापुत्र // 12 // 50- // 12 // NASSASSSS 5 शरीरमानसोझता। मया सोढा अनंतशः॥ वेदना असकृद्धीमा-स्तथा दुःखं भयानि च॥४५॥ अर्थ:-(हे पूज्य!) शरीर अने मनथी उत्पन्न थयेली भयंकर .वेदनाओ, तथा दुःख अने भयमें अनंतीवारं सहन कर्क छे. चातुर्गतिकसंसारे / नानाक्लेशभयंकरें // जन्ममृत्यादिदुःखानि / मया सोढान्यनंतशः // ,46 // अर्थः-वळी विविध प्रकारना क्लेशोथी भयंकर देखाता एवा आ चतुर्गतिरुप संसारमा जन्म मरण आदिकना दुःखो में अनंतीवार सहन कर्यां छे.॥४६॥. यथोष्णोऽग्निश्च लोकेऽस्ति / ततोऽनंतगुणोऽनलः // उष्णो हि नरके तस्या-नुभूता वेदना मया // 47 // अर्थ:-आ लोकमा रहेलो अग्नि जेवो उष्ण छे, तेथी पण अमंतगणी उष्णतावाळो अग्नि खरेखर नरकमा छ, अने ते नरकेना अग्निनी.पण वेदना में अनुभवेली छे. // 47 // यथा शैत्यं नृलोकेऽस्ति / ततोऽनंतगुण स्मृतं // नरके शीतमेतस्य / व्यथा भुक्ता मयामिताः॥४८॥ अर्थः:-आ मनुष्यलोकमां जेवी ठंडी छे, तेथी पण अनंतगणी ठंडी नरकमां कहेली छे, असे ते नरकनी ठंडीनी पण में प्रमाण वेदनाओ भोगवेली छे. // 48 // तत्र कुंभीषु चकेह-मूर्ध्वपादस्त्वधःशिराः / / पक्कप्रवों ज्वलद्वह्वा-वहं मातरनंतशः॥४९॥ अर्थ-वळी हे माताजी ते नरकमां मने कुंभीनी अंदर उचे पग, अने नीचे मस्तक, एमें उंधे मस्तके लटकाबीने पूर्वेधळता अग्निमां अनंतीवार पकावेलो छ unainasuri MS. - 455 P Jun Gun Aarallel Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगापुत्र 13 // ॐन चे बांधीने या करपदी पुनरत्र महादावा-नलवालोपमेऽप्यहं // जाज्वलद् (कलंब) वालकामध्ये दग्धपूर्वोऽस्म्यनंतशः // 50 // 8 चरित्रम अर्थः-वळी त्यां महान दावानलनी ज्वालासरखी धग धगती (बाणसरखी तीक्ष्ण) वेळुनी अंदर पण पूर्वे मने अनंतीवार पकाववामां आन्यो छे. // 5 // विरसत् कटु कुंभीषू- , बद्धोऽहमबांधवः // अनंतशशिछन्नपूर्वः / करपत्रादिभिस्तथा // 51 // अर्थः-वळी बांधव विनाना निराधार एवा मने ते कुंभीमा उचे बांधीने लटकाववाथी अति आर्तनांदे रडता एवा मने करवत- 18 आदिकथी अनंतीवार पूर्वे घेरवामां आवेलो छे. / / 51 // सुतीक्ष्णकंटकाकीर्णे। प्रोच्चे शंबलिपादपे॥ परमाधार्मिकैर्बछो / भग्नगात्राऽस्म्यनंतशः॥ 52 // अर्थ:-अति अणीदार कांटाओथी भरेला उंचा शाल्मली वृक्षपर बांधीने परमाधामीओए अनैतीवार मारां अंगोपांगों भांगी नाख्यां छे. // 52 // आरटन्निक्षुवद्भीम-महायंत्रेषु दुःखरैः // अनंतशः पीलितोऽहं / पापको स्वकर्मभिः // 53 // अर्थः-बळी त्यां आर्तनादी अरेराटी करता एवा मने पापीने में बांधेला कर्मोने लीधेज म्होटा भयंकर यंत्रमा सेलडीनीपेठे अनंतीवार पीलकामां आव्यो छे. // 53 / / ... P .Sunratnasuri MS Jun Gun Aare Trust UU Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | // 14 // & कूजन् कोलस्वरूपैस्तु / शबलश्यामदैवतैः // पातितः पाटितच्छिन्न-स्त्वहं दंष्ट्रादिभिर्द्धवत्॥ 54 // मृगापुत्र अर्थः-वळी त्यां आर्तनादथी कीकीयारी करता एवा मने ते श्याम रंगना परमाधामिक देवीए सुअरना रूप धरीने वृक्षनीपेठे // 14 // पोतानी दाढोवडे त्यां पाडी चीरीने छिन्नभिन्न करी नाख्यो छे. // 54 // द्विधाकृतोऽमीभिर्भिन्नो। भल्लीभिः स्फटितोऽस्म्यहं / सूक्ष्मखंडी कृतश्चापि / तत्र पापादनंतशः // 55 // अर्थः-वळी त्यां नरकमां ते परमाधामीओए पापोने लीधे अनंतीवार मारा बबे टुकडाओ का छे, मने भालांजीथी वींधी नाख्यो छे, फाडी नाख्यो छे, तथा मारा न्हाना न्हाना टुकडाओ करी नाख्या छे, // 55 // योजितोऽहं ज्वलल्लोह-रथे ससमिले वशः॥ तत्र तोत्रादिभिभिन्न / स्तीक्ष्णसूच्यग्रसंनिभैः // 56 // अर्थः-वळी त्यां मने वश करीने धोंसरीवाला बळता लोखंडना रथमां तेओए जोड्यो छे, अने तीक्ष्ण सोइना अग्रभागसरखी आरोवडे मने भेदी नाखवामो आव्यो छे. // 56 // तृषा क्लांतो जलं पास्या-मीति तैश्च विकुर्वितां / प्राप्तो वैतरिणीं तत्र।च्छिनोऽसिसहशोर्मिभिः॥५७॥ अर्थः-वळी त्यां तृषाथी पीडाइने जल पीवानी इच्छा करतां, तेओए विकुर्वेली वैतरिणी नदीमां मने लेइं गया, अने त्यां तलवार सरखां मोजांओ बडे हुँ छिन्न भिन्न थयो. // 57 // Jun Gun Aarad k 5ES ust P &Gunratnasurl MS Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगापुत्र चरित्रम् प्राप्तोऽहमुष्णसंतप्त-स्त्वसिपत्र महावनं // एतद्भिरसिसंकाशैः / पत्रैः खंडीकृता भृशं // 58 // . अर्थ:-बळी अग्निथी तपेला एवा मने तेऔ असिपत्रना म्होटां वनमा लेइ गया, अने स्यां तलवार सरखां पत्रोरटे मारा एकदम द टुकडे टुकडा थइ गया. // 58 // मुद्गरायायुधैस्तीक्ष्ण-रन्यान्यकल्पितरहं // हताशो भग्नगात्रः सन् / प्रापमत्राऽसुखं घनं // 59 // अर्थः-बळी हताश थयेला एवा मने तरेह तरेहना विकुर्वेलां मुद्गर आदिक तीक्ष्ण शस्त्रोवडे मारीने मारां अंगोपांग भांगी नाख्यां, 6 अने तेथी पण हुँ त्यां घणु दुःख पाम्यो. // 59 / / तीक्ष्णधारैस्ततो भूरि-क्षुरिकाकर्तनीभरैः // कल्पितः पाटितश्छिन्न / उत्कृतोऽहमनेकशः॥६॥ 'अर्थः-पछी तीक्ष्ण धारवाळी घणी छरीओ तथा कातरोना समूहोवडे मने अनेकवार त्यां काप्यो, फाड्यो, छेयो, तथा मारी / चामडी उतरडी ठेवामां आवी. // 6 // बध्वा बाढं ततः पाशै-मंगवयाकलीकृतः // आतों रुदंश्च विवश-स्त्वहं व्यापादितः पितः॥६॥ अर्थः-वळी हे पिताजी त्यां मने हरिणनीपेठे मजबूत पाशोवडे बांधीने व्याकुल करवामां आव्यो, अनेएरीते पराधीन ययेला तथा आर्तस्वरे रुदन करता एवा मने मारीनाखवामां आव्यो. // 61 // ROSAGACCॐ ACEBOO Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradstist, UVI Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -: चरित्रम् मृगापुत्र // 16 // 5 % S मकरा कृतिभिस्तैश्च / यस्तोऽहमवशः पितः॥ तस्कृतस्तत्र जालैश्च / मत्स्यवदुःखितः कृतः // 6 // A अर्थः-वळी हे पिताजी! मगरना आकारवाळा ते परमाधामीओ शरणरहित एवा मने मत्स्यनीपेठे गळी गया, वळी त्यां तेओए विकुर्वेली जालोमां पकडीने पण मने दुःखी कर्यो छे. // 62 // श्येनादिरूपैर्देवैस्तै-र्वजतीक्ष्णे स्वचंचुभिः पक्षिवत त्रोटितो विद्ध-च्छेदितोऽहमनेकधा // 3 // अर्थः-पळी बाजआदिकना रूपवाळा एवा ते परमाधामीओए पोतानी वज्र सरखी तीक्ष्ण चांचोवडे मने पसिनीपेठे अनेक प्रकारे तोड्यो छे, वींध्यो छे, तथा छेदी नाख्यो छे. // 63 / / कृतासटि रहे तात। मातश्च द्रुमवभृशं // कुहितः स्फाटितश्छिन्न-स्तक्षितश्च सुराधमैः // 64 // अर्थः-वळी ते अधम परमाधामी देवोए अरेडाटी करता एवा मने त्या वृक्षनीपेठे खूब कूट्यो छे, फाड्यो छे, छेयो छे, तथा छोली नाख्यो छे. // 64 // लोहकारैरिवायोवत् / परमाधार्मिकैरहं // ताडितः कुट्टितः श्रेणी-कृतश्च निजकर्मभिः // 65 // अर्थ:-बळी ते परमाधामी देवोए, लुहार जेम लोखंडने, मारां कौने लीधे मने मार्यों छे, कूटयो छे, तथा तेम करीने पातळी पाटी जेवो पण कों छे.॥६५॥ , Jun Gun Aarat P SI Cunratnasuri M.S. Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगापुत्र चरित्रम् स ताम्रादीन्यति तप्तानि / पायितो विरसं रसन् // भृशं कलकलारावं / कुर्वन्नेवासुरै रहं // 66 // अर्थः-वळी अत्यंत विलाप करता एवा मने ते परमाधामीओए अति उकाळेला उनां कलकलता तांचाआदिक धातुओंना रसो पायाछे प्रारभवे तव मांसानि / प्रियाणि मदिरास्तथा // इति संस्मार्य महा-मांसानि रूधिराणि च // 67 // गृहीत्वा वह्रिवर्णानि / कृत्वा च त्रिदशैरिमैः // खादितः पायितश्चाहं / रुदन्नपि कुकर्मभिः॥ ६८.॥युग्मं॥ अर्थः-पूर्वभवमा तने मांस अने मदिरा (खावा पीवामाटे.) बहु व्हालां हता, एम याद करावीने मरां कुकर्मोने लीवे मारांज शरीरमांथी मांस अने रुधिर कहाडीने, तथा तेने अग्नि सरखां करीने, ते परमाधामी देवोए मने रोवरावीने पण खवराव्यां अने पीवराव्यां छे. // .67 // .68 / / युग्मं // .. . प्रागजन्मनि त्वया मूढ / परस्त्रीसंगमः कृतः // परमाधार्मिकदेवे-निर्भत्स्येति पुनः पुनः // 69 // तप्तपुतलिकामग्नि-वर्णां कृत्वा तया समं // आलिंगनानि बहुधा / कारितोऽहं च दीनवाग् ॥७॥युग्मं॥ अर्थ:-अरें मूढ! ते पूर्वजन्ममां परस्त्रीनो संग करेल छे, एम ते परमाधामिक देवोए वारंवार मने निभ्रं छीने, // 69 // (लोखंडनी) पुतळीने अग्निमां लालचोळ तपावीने ते पुतळीसाथे, दीन वचनों बोलता एवा पण मने घणी घणीवार अलिंगन कराव्यु // 70 // // / P unratnasur MS. Jun Gun Aarad Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगापुत्र चरित्रम् 1-30 मयका नरकेष्वेव-मनुवा ते नरकोनी अंदर में चेदना एवं च नित्यभोतेन / दुःखितेन मथाखिलाः॥ वेदना वेदिता एताः। पितरौ नरके पराः॥७१ // अर्थः-हे मातापिताजी! एरीते हमेशां भय पामेला अने दुःखी थयेला एवा में नरकनी अंदर उपर वर्णन कर्या मुजब परम (तीव्र ) वेदनाओ में सहन करेली छे. / / 71 / / नृलोके यादृशास्तात / दृश्यते वेदना घनाः॥ ततोऽनंतगुणाः संति। नरके दुःखवेदनाः॥७२॥ - अर्थः माटे हे पिताजी! मनुष्यलोकमा जेजेघणी वेदनाओ देखाय छे,तेथी पण अनंतगणी नरकनी अंदर थतां दुःखोनी वेदना छे. मयका नरकेष्वेव-मनुभृता हि वेदनाः॥ पितरौ तयुवां ब्रूतं / सुकुमालोऽस्म्यहं कथं // 73 // ... अर्थ:-हे मातापिताजी! खरेखर ए रीते नरकोनी अंदर में वेदनाओ अनुभवेली छे, माटे आप कहो के, हुशीरीते सुकुमाल छु इत्युक्त्वा विरते तस्मिन् / पितरावाहतुस्त्विदं॥ हे वत्स स्वेच्छयैव त्वं / श्रामण्यं गृह सत्वरं // 74 // अर्थः-एम कहीने ते मृगापुत्र ज्यारे मौन रह्यो, त्यारे तेना मातापिताए एम कधू के, हे वत्स! तुं / ( सुखेथी) तारी इच्छामुजब तुरत चारित्र ग्रहण कर'. / / 74 // परं निःप्रतिकर्मत्वं / श्रामण्ये च सुंदुष्करं // व्यतीते यौवने तस्या-नुभवस्ते भविष्यति // 15 // अर्थः-परंतु मुनिपणामां (रोगआदिकनो) इलाज नही करातो होवाथी ते पाळवार्नु मुश्केली भयं छे, अने तेमातेनो यौवनावस्था वीत्याबाद तने अनुभव थशे. // 75 // HGunratnasur M.S. यव त्वं / श्रामण्यं गृह -40%2- 1565 Jun Gun Aara u st Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रम् 19 // मृगापुत्र सोऽवक पितरौ युष्मद्भया / युदुक्तं च तथैव तत् / / परं बने कुरंगा / परिकर्म करोति कः॥ 76 // अर्थः-त्यारे ते मृगापुत्रे कयुके, हे मातापिताजी! आपे जे का, ते तेमज (सत्यज) छे, परंतु वनमा हरिणोनी (रोगआदिक वखते ) सेवाचाकरी कोण करे छे! // 76 18| एकाकी हरिणोऽरण्ये / चरति स्वेच्छया यथा // तथैकः संचरिष्यामि / धर्म सुचरणात्मकं // 77 // अर्थः-जेम हरणि एकाकी जंगलमा पोतानी इच्छामुजब विचरे छे, तेम हुँ पण एकलोज विचारीने आ उत्तम चारित्रधर्मनुं पालन करीश. // 77 // कुरंगस्य यदातंकः। कांतारे विजने भवेत् // वृक्षमूले स्थितं दीनं / चिकित्सेत्तं तदा हि कः॥७८॥ अर्थः-ज्यारे तेवां निर्जन वनमां ते हरिणने कई रोग थाय छे, अने तेथी ते वृक्षनीचे दीन थइने बेसी जाय छे, त्यारे खरेखर तेनेमाटे.त्यां कोण तेना रोगनी तपास करे छे. / / 78 // को दत्तेऽस्यौषधं वा कः। परिपृच्छति वा सुखं // कस्तृणानि जलं वास्य / समानीयाथवाऽर्पयेत् // 79 // अर्थः-अथवा त्यां तेने कोण औषध आपे छे, तथा तेने सुखसाता कोण पूछे.? बळी तेने घास अथवा जल कोण लावीने आपे छे. / / 79 // ॐॐॐERS PIGGunratnasun MS Jun Gun Aaradh Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रम् 20 // मृगापुत्र ई रोगाभावात्सुखी सम्यग् / यदा गोचरमेति च // तदा तृणजलाथं स / महारण्ये सरस्सु च // 8 // अर्थ:-रोग मटी जवाथी ज्यारे ते. हरिण सारीरीने साजो थइ गोचरमां आवे छे, त्यारे ते घास तथा पाणी माटे महोटां जंगल तथा तळावपते जाय छे. // 8 // तृणं भक्ष्यं चरित्वांभः पीत्वा वने सरस्सु सः // मृगचया चरित्वा च / गच्छे न्मृगभुवंमृगः॥ 81 // अर्थः-त्या वनमा भक्षण कायोग्य घास खाइने, तथा तळावोमा जल पीने, अने एरीते. मृगचर्यापणे विचरीने ते हरिण (पोताती) मूगभूमिमां जाय छे..॥८१ // एवं समुत्थितः साधुः / संयमेऽनियतस्थितिः // मृगचर्यामथा सेव्य / प्रयात्यूर्ध्वगति कृती॥ 8 // अर्थः-एवी रीते ( दीक्षा लेइने) चारित्रमा उद्यमवंत थयेलो साधु पण एक जगोए नहि रहेता (विहार करतो थको ) उपर वर्णवेली मृगचर्या सेवीने कृतार्थ थयो थको उंची गतिमा ( मोक्षमा) जाय छे. // 82 // अनेकचारीहरिणों यथैक-स्त्वनेकवासोऽध्रुवगोचरश्च // एवंमुनिगोपरिकां प्रविष्टो / नो हीलयेत्किंचिदथो न निंदेत् // 83 // अर्थ:-अनेक जगोए विचरनारोः हरिण जेम एक जगोए निवास करी रहेतो नथी, तथा अनिश्चित गोचरवाळो होय छे, तेरीते (मृगचयाँ) करती मुंनि गोचरीमाटे ( गृहस्थने धेर) प्रवेश करीने कोइनी हीलना के निंदा करतो नथी. // 83 // P untatrasuri MS. वववववव u Jun Gun Aara . st .. . Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगापुत्र / 21 // चरित्रम मृगचर्या चरिष्यामि / पितरौ भवदाज्ञया // विज्ञाय पितरौ ब्रूतो / दुर्निवार्य तदाग्रहं // 84 // अर्थः-माटे हे मातापिताजी! आपनी अनुज्ञाथी हुँ पण तेवी मृगयचर्या आचरीश. हवे ते मृगापुत्रना मावाप तेना आग्रहने / न निवारी शकाय तेरो जाणीने कहेचा लाग्या के, // 84 // मृगापुत्रकुमारेंद्र / मृगचर्याभिरामता // चेत्तदा तां गृहीत्वाशु / चरित्वा च सुखी भव // 85 // अर्थः-डे मृगापुत्र कुमारेंद्र! ज्यारे तने तेवी मृगचर्या व्हाली छे, तो तुरत ते मृगचर्या ग्रहण करीने, तथा ते मुजब विचरीने तुं / सुखी था.? // 85 // .. पित्रोरनुज्ञामासाद्य / मृगासूः सत्त्वसेवधिः॥ बाह्यमाभ्यंतरं सर्व / तूर्णं त्यक्त्वा परिग्रहं // 86 // तथा संयममासाय / मृगाचर्यामसेवत // क्षिप्त्वा कर्माण्यशेषाणि / मृतं प्राप्तोऽव्ययं पदं ॥८७॥युग्मं॥ अर्थ:-एरीते सत्वरना निधानसरखो ते मृगापुत्र मातापितानी रजा मेलबीने तुरत सर्व प्रकारनो बाह्य तथा अभ्यंतर परिग्रह तजीने,॥८६॥तथा चारित्र लेइने मृगचर्या मुजब विचरवा लाग्या, अने तुरतज सर्व कर्मोनो क्षय करीने मोक्षपद पाम्या.॥८७||युग्म।। मृगापुत्र इवामंद-परमानंदसौख्यदा // मृगचर्या निषेवध्वं / प्रयत्नेन मुनीश्वरः // 8 // P u nratnasur M.S. IPI Jun Gun Aaradha Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृगापुत्र चरित्रम् // 22 // // 22 // SSS अर्थ-हे मुनीश्वरो एरीते मृगापुत्रनी पेठे शाश्वता परम आनंदवा मुखने (मोक्षने) श्राफ्नारी मृगचर्मने नमो पण प्रयत्न पूर्वक सेवो.. // 88 // सुनीवे नगरे स्वमंदिरगवाक्षे संस्थितः स्वर्गिवत् / दृष्ट्वा संयमिनं जितेंद्वियगणं संजातजातिस्मृतिः // प्राग्जन्मन्यनुभूतभूरिनरकोद्यद्वेदनावर्णनैः। पित्राप्तात्मविमोक्ष पुष चरणात् सिद्धो मृगापुत्रनः // 69 // अर्थः-मुग्रीवनामना नगरमां देवनीपेठे पोताना महेलना झरुखामां बेठेला मृगापुत्र (मार्गे जता) जितेंद्रिय मुनीराजने जोइने जातिस्मरण ज्ञान थवाथी पूर्व जन्ममां अनुभवेली नरकनी घणी वेदनाभोना वर्ण / पूर्वक मातापितानी रजा लेइने, चारित्र अंगीकार करी मोक्षे गया. // 89 // // इति श्री मृगापुत्रचरित्रं समाप्तं // श्रीरस्तु // ___ आ ग्रंथ श्री जामनगर निवासी पंडित श्रावक हीरालाल हंसराजे सेनुं गुजराती भाषांतर करी, ते सहित स्वपरना श्रेयमाटे श्रीशुभवर्धनगणीजीए रचेली ऋषिमंडलनी टीकामांथी ओधरीने पाताना श्री जैनभास्करोदय छापखानामा छापो प्रसिद्ध कयों छे. ... // समाप्तोऽयं ग्रंथः गुरुश्रीमच्चारित्रविजयसुप्रसादात् // // श्रीरस्तु // H .. . PT Gunnatrasuri MS Jun Gun Aaradors Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 81882lBinalba Belalabawezo 551-457457574147414fisi 33396 9519545 Il sia zitaunganarsi HHTA, II 1967F14595 91919191919128209191919191919191910 Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasur M.S