________________ चरित्रम् 20 // मृगापुत्र ई रोगाभावात्सुखी सम्यग् / यदा गोचरमेति च // तदा तृणजलाथं स / महारण्ये सरस्सु च // 8 // अर्थ:-रोग मटी जवाथी ज्यारे ते. हरिण सारीरीने साजो थइ गोचरमां आवे छे, त्यारे ते घास तथा पाणी माटे महोटां जंगल तथा तळावपते जाय छे. // 8 // तृणं भक्ष्यं चरित्वांभः पीत्वा वने सरस्सु सः // मृगचया चरित्वा च / गच्छे न्मृगभुवंमृगः॥ 81 // अर्थः-त्या वनमा भक्षण कायोग्य घास खाइने, तथा तळावोमा जल पीने, अने एरीते. मृगचर्यापणे विचरीने ते हरिण (पोताती) मूगभूमिमां जाय छे..॥८१ // एवं समुत्थितः साधुः / संयमेऽनियतस्थितिः // मृगचर्यामथा सेव्य / प्रयात्यूर्ध्वगति कृती॥ 8 // अर्थः-एवी रीते ( दीक्षा लेइने) चारित्रमा उद्यमवंत थयेलो साधु पण एक जगोए नहि रहेता (विहार करतो थको ) उपर वर्णवेली मृगचर्या सेवीने कृतार्थ थयो थको उंची गतिमा ( मोक्षमा) जाय छे. // 82 // अनेकचारीहरिणों यथैक-स्त्वनेकवासोऽध्रुवगोचरश्च // एवंमुनिगोपरिकां प्रविष्टो / नो हीलयेत्किंचिदथो न निंदेत् // 83 // अर्थ:-अनेक जगोए विचरनारोः हरिण जेम एक जगोए निवास करी रहेतो नथी, तथा अनिश्चित गोचरवाळो होय छे, तेरीते (मृगचयाँ) करती मुंनि गोचरीमाटे ( गृहस्थने धेर) प्रवेश करीने कोइनी हीलना के निंदा करतो नथी. // 83 // P untatrasuri MS. वववववव u Jun Gun Aara . st .. .