________________ चरित्रम् 19 // मृगापुत्र सोऽवक पितरौ युष्मद्भया / युदुक्तं च तथैव तत् / / परं बने कुरंगा / परिकर्म करोति कः॥ 76 // अर्थः-त्यारे ते मृगापुत्रे कयुके, हे मातापिताजी! आपे जे का, ते तेमज (सत्यज) छे, परंतु वनमा हरिणोनी (रोगआदिक वखते ) सेवाचाकरी कोण करे छे! // 76 18| एकाकी हरिणोऽरण्ये / चरति स्वेच्छया यथा // तथैकः संचरिष्यामि / धर्म सुचरणात्मकं // 77 // अर्थः-जेम हरणि एकाकी जंगलमा पोतानी इच्छामुजब विचरे छे, तेम हुँ पण एकलोज विचारीने आ उत्तम चारित्रधर्मनुं पालन करीश. // 77 // कुरंगस्य यदातंकः। कांतारे विजने भवेत् // वृक्षमूले स्थितं दीनं / चिकित्सेत्तं तदा हि कः॥७८॥ अर्थः-ज्यारे तेवां निर्जन वनमां ते हरिणने कई रोग थाय छे, अने तेथी ते वृक्षनीचे दीन थइने बेसी जाय छे, त्यारे खरेखर तेनेमाटे.त्यां कोण तेना रोगनी तपास करे छे. / / 78 // को दत्तेऽस्यौषधं वा कः। परिपृच्छति वा सुखं // कस्तृणानि जलं वास्य / समानीयाथवाऽर्पयेत् // 79 // अर्थः-अथवा त्यां तेने कोण औषध आपे छे, तथा तेने सुखसाता कोण पूछे.? बळी तेने घास अथवा जल कोण लावीने आपे छे. / / 79 // ॐॐॐERS PIGGunratnasun MS Jun Gun Aaradh