________________ मृगापुत्र चरित्रम् 1-30 मयका नरकेष्वेव-मनुवा ते नरकोनी अंदर में चेदना एवं च नित्यभोतेन / दुःखितेन मथाखिलाः॥ वेदना वेदिता एताः। पितरौ नरके पराः॥७१ // अर्थः-हे मातापिताजी! एरीते हमेशां भय पामेला अने दुःखी थयेला एवा में नरकनी अंदर उपर वर्णन कर्या मुजब परम (तीव्र ) वेदनाओ में सहन करेली छे. / / 71 / / नृलोके यादृशास्तात / दृश्यते वेदना घनाः॥ ततोऽनंतगुणाः संति। नरके दुःखवेदनाः॥७२॥ - अर्थः माटे हे पिताजी! मनुष्यलोकमा जेजेघणी वेदनाओ देखाय छे,तेथी पण अनंतगणी नरकनी अंदर थतां दुःखोनी वेदना छे. मयका नरकेष्वेव-मनुभृता हि वेदनाः॥ पितरौ तयुवां ब्रूतं / सुकुमालोऽस्म्यहं कथं // 73 // ... अर्थ:-हे मातापिताजी! खरेखर ए रीते नरकोनी अंदर में वेदनाओ अनुभवेली छे, माटे आप कहो के, हुशीरीते सुकुमाल छु इत्युक्त्वा विरते तस्मिन् / पितरावाहतुस्त्विदं॥ हे वत्स स्वेच्छयैव त्वं / श्रामण्यं गृह सत्वरं // 74 // अर्थः-एम कहीने ते मृगापुत्र ज्यारे मौन रह्यो, त्यारे तेना मातापिताए एम कधू के, हे वत्स! तुं / ( सुखेथी) तारी इच्छामुजब तुरत चारित्र ग्रहण कर'. / / 74 // परं निःप्रतिकर्मत्वं / श्रामण्ये च सुंदुष्करं // व्यतीते यौवने तस्या-नुभवस्ते भविष्यति // 15 // अर्थः-परंतु मुनिपणामां (रोगआदिकनो) इलाज नही करातो होवाथी ते पाळवार्नु मुश्केली भयं छे, अने तेमातेनो यौवनावस्था वीत्याबाद तने अनुभव थशे. // 75 // HGunratnasur M.S. यव त्वं / श्रामण्यं गृह -40%2- 1565 Jun Gun Aara u st