________________ मृगापुत्र // 12 // 50- // 12 // NASSASSSS 5 शरीरमानसोझता। मया सोढा अनंतशः॥ वेदना असकृद्धीमा-स्तथा दुःखं भयानि च॥४५॥ अर्थ:-(हे पूज्य!) शरीर अने मनथी उत्पन्न थयेली भयंकर .वेदनाओ, तथा दुःख अने भयमें अनंतीवारं सहन कर्क छे. चातुर्गतिकसंसारे / नानाक्लेशभयंकरें // जन्ममृत्यादिदुःखानि / मया सोढान्यनंतशः // ,46 // अर्थः-वळी विविध प्रकारना क्लेशोथी भयंकर देखाता एवा आ चतुर्गतिरुप संसारमा जन्म मरण आदिकना दुःखो में अनंतीवार सहन कर्यां छे.॥४६॥. यथोष्णोऽग्निश्च लोकेऽस्ति / ततोऽनंतगुणोऽनलः // उष्णो हि नरके तस्या-नुभूता वेदना मया // 47 // अर्थ:-आ लोकमा रहेलो अग्नि जेवो उष्ण छे, तेथी पण अमंतगणी उष्णतावाळो अग्नि खरेखर नरकमा छ, अने ते नरकेना अग्निनी.पण वेदना में अनुभवेली छे. // 47 // यथा शैत्यं नृलोकेऽस्ति / ततोऽनंतगुण स्मृतं // नरके शीतमेतस्य / व्यथा भुक्ता मयामिताः॥४८॥ अर्थः:-आ मनुष्यलोकमां जेवी ठंडी छे, तेथी पण अनंतगणी ठंडी नरकमां कहेली छे, असे ते नरकनी ठंडीनी पण में प्रमाण वेदनाओ भोगवेली छे. // 48 // तत्र कुंभीषु चकेह-मूर्ध्वपादस्त्वधःशिराः / / पक्कप्रवों ज्वलद्वह्वा-वहं मातरनंतशः॥४९॥ अर्थ-वळी हे माताजी ते नरकमां मने कुंभीनी अंदर उचे पग, अने नीचे मस्तक, एमें उंधे मस्तके लटकाबीने पूर्वेधळता अग्निमां अनंतीवार पकावेलो छ unainasuri MS. - 455 P Jun Gun Aarallel