________________ | // 14 // & कूजन् कोलस्वरूपैस्तु / शबलश्यामदैवतैः // पातितः पाटितच्छिन्न-स्त्वहं दंष्ट्रादिभिर्द्धवत्॥ 54 // मृगापुत्र अर्थः-वळी त्यां आर्तनादथी कीकीयारी करता एवा मने ते श्याम रंगना परमाधामिक देवीए सुअरना रूप धरीने वृक्षनीपेठे // 14 // पोतानी दाढोवडे त्यां पाडी चीरीने छिन्नभिन्न करी नाख्यो छे. // 54 // द्विधाकृतोऽमीभिर्भिन्नो। भल्लीभिः स्फटितोऽस्म्यहं / सूक्ष्मखंडी कृतश्चापि / तत्र पापादनंतशः // 55 // अर्थः-वळी त्यां नरकमां ते परमाधामीओए पापोने लीधे अनंतीवार मारा बबे टुकडाओ का छे, मने भालांजीथी वींधी नाख्यो छे, फाडी नाख्यो छे, तथा मारा न्हाना न्हाना टुकडाओ करी नाख्या छे, // 55 // योजितोऽहं ज्वलल्लोह-रथे ससमिले वशः॥ तत्र तोत्रादिभिभिन्न / स्तीक्ष्णसूच्यग्रसंनिभैः // 56 // अर्थः-वळी त्यां मने वश करीने धोंसरीवाला बळता लोखंडना रथमां तेओए जोड्यो छे, अने तीक्ष्ण सोइना अग्रभागसरखी आरोवडे मने भेदी नाखवामो आव्यो छे. // 56 // तृषा क्लांतो जलं पास्या-मीति तैश्च विकुर्वितां / प्राप्तो वैतरिणीं तत्र।च्छिनोऽसिसहशोर्मिभिः॥५७॥ अर्थः-वळी त्यां तृषाथी पीडाइने जल पीवानी इच्छा करतां, तेओए विकुर्वेली वैतरिणी नदीमां मने लेइं गया, अने त्यां तलवार सरखां मोजांओ बडे हुँ छिन्न भिन्न थयो. // 57 // Jun Gun Aarad k 5ES ust P &Gunratnasurl MS