________________ चरित्रम् मातः पितर्मया भोगा। भुक्ता विषफलोपमाः॥ मुखेऽतिमधुराः प्रांते। कटुका दुःखदायिनः॥११॥ मृगापुत्र अर्थः-हे ! माता पिताजी ! में झेरी फल सरखा (घगा) भोगो भोगव्या छे, के जे मुखमा लेतां अति मधुरा लागे छे, परंतु // 4 // परिणामे कडवा अने दुःख देनारा छे. // 11 // अनित्यमिदमंगं मे-ऽशुचिजं चाशुचिभृतं // जीवस्याऽशाश्वतं स्थानं / दुःखक्लेशैकभाजनं // 12 // | अर्थः- आ मारुं शरीर अशुचिमाथी उत्पन्न थयेलं, अने आशुचिथीन भरेलु तथा अनित्य छे. तेमज ते आ जीवने रहेवा पाटे क्षणिक स्थान सरखं, अने दुःखो तथा क्लेशोना पात्रमरखं छे. // 12 // विनश्वरे रति नांगे / प्राप्तोऽस्मि चितरौ क्वचित् // जलबुबुदसंकाशे। त्यक्तव्येऽवश्यमुच्चकैः // 13 // | अर्थ:-हे माता पिताजी' जलना परपोटानी पेठे नाशवंत, तथा अवश्य तजवा लायक एवां आ शरीरथी हुँ क्यांय पण सारीरीते सुख पाम्यो नथी. // 13 // आधिव्याधिगृहे जाग्र-जराजन्ममृतिव्यथे / असारे मनुजत्वे हि / न लेभे रतिमुच्चकैः // 14 // है अर्थः-आधि अने व्याधिना स्थानरूप, वृद्धावस्था, जन्म तथा मरणनी पीडावाळा एवा आ असार मनुष्यभवमां पण खरेखर हुँ सारी रीते सुख पाम्यो नथी. // 14 // Jun Gun Aarathicolet Plantatnasun MS REA%A5-%ARA . KI