Book Title: Mrugaputra Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 16
________________ मृगापुत्र चरित्रम् प्राप्तोऽहमुष्णसंतप्त-स्त्वसिपत्र महावनं // एतद्भिरसिसंकाशैः / पत्रैः खंडीकृता भृशं // 58 // . अर्थ:-बळी अग्निथी तपेला एवा मने तेऔ असिपत्रना म्होटां वनमा लेइ गया, अने स्यां तलवार सरखां पत्रोरटे मारा एकदम द टुकडे टुकडा थइ गया. // 58 // मुद्गरायायुधैस्तीक्ष्ण-रन्यान्यकल्पितरहं // हताशो भग्नगात्रः सन् / प्रापमत्राऽसुखं घनं // 59 // अर्थः-बळी हताश थयेला एवा मने तरेह तरेहना विकुर्वेलां मुद्गर आदिक तीक्ष्ण शस्त्रोवडे मारीने मारां अंगोपांग भांगी नाख्यां, 6 अने तेथी पण हुँ त्यां घणु दुःख पाम्यो. // 59 / / तीक्ष्णधारैस्ततो भूरि-क्षुरिकाकर्तनीभरैः // कल्पितः पाटितश्छिन्न / उत्कृतोऽहमनेकशः॥६॥ 'अर्थः-पछी तीक्ष्ण धारवाळी घणी छरीओ तथा कातरोना समूहोवडे मने अनेकवार त्यां काप्यो, फाड्यो, छेयो, तथा मारी / चामडी उतरडी ठेवामां आवी. // 6 // बध्वा बाढं ततः पाशै-मंगवयाकलीकृतः // आतों रुदंश्च विवश-स्त्वहं व्यापादितः पितः॥६॥ अर्थः-वळी हे पिताजी त्यां मने हरिणनीपेठे मजबूत पाशोवडे बांधीने व्याकुल करवामां आव्यो, अनेएरीते पराधीन ययेला तथा आर्तस्वरे रुदन करता एवा मने मारीनाखवामां आव्यो. // 61 // ROSAGACCॐ ACEBOO Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradstist, UVI

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