Book Title: Mrugaputra Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 17
________________ -: चरित्रम् मृगापुत्र // 16 // 5 % S मकरा कृतिभिस्तैश्च / यस्तोऽहमवशः पितः॥ तस्कृतस्तत्र जालैश्च / मत्स्यवदुःखितः कृतः // 6 // A अर्थः-वळी हे पिताजी! मगरना आकारवाळा ते परमाधामीओ शरणरहित एवा मने मत्स्यनीपेठे गळी गया, वळी त्यां तेओए विकुर्वेली जालोमां पकडीने पण मने दुःखी कर्यो छे. // 62 // श्येनादिरूपैर्देवैस्तै-र्वजतीक्ष्णे स्वचंचुभिः पक्षिवत त्रोटितो विद्ध-च्छेदितोऽहमनेकधा // 3 // अर्थः-पळी बाजआदिकना रूपवाळा एवा ते परमाधामीओए पोतानी वज्र सरखी तीक्ष्ण चांचोवडे मने पसिनीपेठे अनेक प्रकारे तोड्यो छे, वींध्यो छे, तथा छेदी नाख्यो छे. // 63 / / कृतासटि रहे तात। मातश्च द्रुमवभृशं // कुहितः स्फाटितश्छिन्न-स्तक्षितश्च सुराधमैः // 64 // अर्थः-वळी ते अधम परमाधामी देवोए अरेडाटी करता एवा मने त्या वृक्षनीपेठे खूब कूट्यो छे, फाड्यो छे, छेयो छे, तथा छोली नाख्यो छे. // 64 // लोहकारैरिवायोवत् / परमाधार्मिकैरहं // ताडितः कुट्टितः श्रेणी-कृतश्च निजकर्मभिः // 65 // अर्थ:-बळी ते परमाधामी देवोए, लुहार जेम लोखंडने, मारां कौने लीधे मने मार्यों छे, कूटयो छे, तथा तेम करीने पातळी पाटी जेवो पण कों छे.॥६५॥ , Jun Gun Aarat P SI Cunratnasuri M.S.

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