Book Title: Mrugaputra Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ मृगापुत्र / 21 // चरित्रम मृगचर्या चरिष्यामि / पितरौ भवदाज्ञया // विज्ञाय पितरौ ब्रूतो / दुर्निवार्य तदाग्रहं // 84 // अर्थः-माटे हे मातापिताजी! आपनी अनुज्ञाथी हुँ पण तेवी मृगयचर्या आचरीश. हवे ते मृगापुत्रना मावाप तेना आग्रहने / न निवारी शकाय तेरो जाणीने कहेचा लाग्या के, // 84 // मृगापुत्रकुमारेंद्र / मृगचर्याभिरामता // चेत्तदा तां गृहीत्वाशु / चरित्वा च सुखी भव // 85 // अर्थः-डे मृगापुत्र कुमारेंद्र! ज्यारे तने तेवी मृगचर्या व्हाली छे, तो तुरत ते मृगचर्या ग्रहण करीने, तथा ते मुजब विचरीने तुं / सुखी था.? // 85 // .. पित्रोरनुज्ञामासाद्य / मृगासूः सत्त्वसेवधिः॥ बाह्यमाभ्यंतरं सर्व / तूर्णं त्यक्त्वा परिग्रहं // 86 // तथा संयममासाय / मृगाचर्यामसेवत // क्षिप्त्वा कर्माण्यशेषाणि / मृतं प्राप्तोऽव्ययं पदं ॥८७॥युग्मं॥ अर्थ:-एरीते सत्वरना निधानसरखो ते मृगापुत्र मातापितानी रजा मेलबीने तुरत सर्व प्रकारनो बाह्य तथा अभ्यंतर परिग्रह तजीने,॥८६॥तथा चारित्र लेइने मृगचर्या मुजब विचरवा लाग्या, अने तुरतज सर्व कर्मोनो क्षय करीने मोक्षपद पाम्या.॥८७||युग्म।। मृगापुत्र इवामंद-परमानंदसौख्यदा // मृगचर्या निषेवध्वं / प्रयत्नेन मुनीश्वरः // 8 // P u nratnasur M.S. IPI Jun Gun Aaradha

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