Book Title: Mrugaputra Charitram
Author(s): Shubhvardhan Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 14
________________ मृगापुत्र 13 // ॐन चे बांधीने या करपदी पुनरत्र महादावा-नलवालोपमेऽप्यहं // जाज्वलद् (कलंब) वालकामध्ये दग्धपूर्वोऽस्म्यनंतशः // 50 // 8 चरित्रम अर्थः-वळी त्यां महान दावानलनी ज्वालासरखी धग धगती (बाणसरखी तीक्ष्ण) वेळुनी अंदर पण पूर्वे मने अनंतीवार पकाववामां आन्यो छे. // 5 // विरसत् कटु कुंभीषू- , बद्धोऽहमबांधवः // अनंतशशिछन्नपूर्वः / करपत्रादिभिस्तथा // 51 // अर्थः-वळी बांधव विनाना निराधार एवा मने ते कुंभीमा उचे बांधीने लटकाववाथी अति आर्तनांदे रडता एवा मने करवत- 18 आदिकथी अनंतीवार पूर्वे घेरवामां आवेलो छे. / / 51 // सुतीक्ष्णकंटकाकीर्णे। प्रोच्चे शंबलिपादपे॥ परमाधार्मिकैर्बछो / भग्नगात्राऽस्म्यनंतशः॥ 52 // अर्थ:-अति अणीदार कांटाओथी भरेला उंचा शाल्मली वृक्षपर बांधीने परमाधामीओए अनैतीवार मारां अंगोपांगों भांगी नाख्यां छे. // 52 // आरटन्निक्षुवद्भीम-महायंत्रेषु दुःखरैः // अनंतशः पीलितोऽहं / पापको स्वकर्मभिः // 53 // अर्थः-बळी त्यां आर्तनादी अरेराटी करता एवा मने पापीने में बांधेला कर्मोने लीधेज म्होटा भयंकर यंत्रमा सेलडीनीपेठे अनंतीवार पीलकामां आव्यो छे. // 53 / / ... P .Sunratnasuri MS Jun Gun Aare Trust UU

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