Book Title: Mrugaputra Charitram Author(s): Shubhvardhan Gani Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 9
________________ 1 मृगापुत्र // 8 // // 8 // दुष्करं धनधान्यादि-परिग्रहविवर्जनं // निर्ममत्वाखिलारंभ-परित्यागौ च सर्वदा // 29 // अर्थः-वळी हमेशां धन तथा धान्य आदिक परिग्रहनो त्याग करवो, तेमज ममतानो त्याग करीने सर्व आरंभोनो त्याग करवो है / चरित्रम् न पण मुश्केल छे. // 29 // रात्रौ चतुर्विधाहार-परित्यागस्तु दुष्करः // सर्वथैव न कर्तव्य-स्तथा संनिधिसंचयः // 30 // अर्थ-वळी रात्रिए चारे प्रकारना आहारनो त्याग करवो पण मुश्केल छे, तेमज सर्वथा प्रकारे कोइ पण वस्तुओ पासे संयम राखी शकाशे नही // 30 // क्षुत्पिपासातिशीतोषणा-दंशमशकवेदनाः // पराक्रोशा दुःखशय्या। तृणस्पों मलस्तथा // 31 // / ताडनं तर्जनं चैव / वधबंधा सुदुस्सहौ // भिक्षाचर्या सदा यांचा / लाभा भावश्च दुःसहः ॥३२॥युग्मं॥ अर्थः क्षुधा, तृषा, अतिठंडी, अतिताप, दंश, अने मच्छरनी पीडा, बीजा क्रोधनां वचनो, शरीरने कष्ट उपजे एवी शय्या अथवा उपाश्रय, डाभआदिक शरीरमा हुंचे एवां तृणोनो स्पर्श, शरीरसंबंधी मेल, // 32 // तेमज ताडन, तर्जना, वध अने बंधन पण सहन करवां मुश्केल छे, तेमज हमेशां भिक्षामाटे भमवं, याचना करवी, अने जोइती वस्तु मळवानो अभाव, ए सघळा परीषहो सहन करवा मुश्केल छे. // 32 // युग्मं // .. 442654587-%ॐॐल PELAGunratnasuri MLS Jun Gun AaradPage Navigation
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