Book Title: Mrugaputra Charitram Author(s): Shubhvardhan Gani Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 8
________________ मृगापुत्र चरित्रम् ARSHISHRA 8 भिक्षोः शिलांगरूपाणां / गुणानां च दिवानिशं // अष्टादश सहस्राणि / धारणीयानि साधुभिः // 24 // अर्थः-केमके साधुओने हमेशां रातदिवस भिक्षुकना शीलसंबंधी अढार हजार भेदोरूपी गुणोने धारण करवा पडे छे. // 24 // समताखिलजीवेषु / शत्रौ मित्रेऽथ दुर्जने // दुःकरा सर्वदा प्राणा-तिपातविरतिर्मुनेः // 25 // अर्थः-वळी मुनिने शत्रु, मित्र तथा दुर्जन, एम सर्व जीवोमते समता राखवी पडे छे, तेमज हमेशां जीवहिंसाथी दूर रहेवा महा मुश्केल छे. // 25 // अप्रमत्ततया नित्यं / मृषावादविवजनं / दुःकरं खलु वक्तव्यं / सावधानतया हितं // 26 // अर्थः-वळी हमेशा प्रमादरहित थइने मृषावचनना त्यागपूर्वक सावधानपणे हितकारी वचन बोलवान खरेखर मुश्केल छे. // 26 // तृणमात्रस्याप्यदत्तस्य / वर्जनं वत्स दुष्करं // अनवयैषणीयस्या-हारस्य ग्रहणं तथा // 27 // अर्थः-वळी हे वत्स ! फक्त तणखलां जेवी पण अणदीधेली वस्तु लेवानो त्याग, तथा निर्दोष अने योग्य आहार ग्रहण करवानु पण मुश्केल छे. // 27 // अब्रह्मचर्यविरति-भुक्तभोगस्य सद्यतेः // सुदुष्करं तथा ब्रह्म-व्रतधारणमन्वहं // 28 // अर्थः-वळी पूर्वावस्थामां (गृहस्थीपणापां) जेण भोगो भोगवेला छे, एवा उत्तम यतिने (पण) स्त्रीविलासथी विरक्त थइने हमेशां ब्रह्मचर्य पालवु, ते पण महा मुश्केल छे. // 28 // // 7 // Gunratnasun M.S. Jun Gun AaradhiPage Navigation
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