Book Title: Mool me Bhool
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 19
________________ मूल में भूल जाये तो भी सच्चे मुनि नरक में नहीं जाते, क्योंकि उनके विपरीतभाव - हिंसक परिणाम नहीं हैं; विपरीत स्वभाववाला नरक में जाता है, किन्तु कोई निमित्तवाला नरक में नहीं जाता। प्रश्न- आपने कहा कि निमित्तवाला नरक में नहीं जाता, तब बहुत-सा रुपया-पैसा इत्यादि परिग्रह रखने में कोई हानि तो नहीं है ? उत्तर - निमित्त दोष का कारण नहीं है, किन्तु अपना ममत्वभाव अवश्य ही दोष का कारण है। जो पैसा इत्यादि रखने का भाव हुआ, वह कहीं बिना ममता के होता होगा ? ममता ही पापभाव है। बहुत रुपयापैसा से अथवा पर जीव के मरने से आत्मा नरक में नहीं जाता, किन्तु पर जीव को मारने का हिंसकभाव और अधिक रुपया-पैसा रखने का तीव्र ममत्वभाव ही जीव को नरक में ले जाता है। किसी के पास एक ही रुपया हो, किन्तु उसके ममत्वभाव अधिक हो तो वह नरक में जाता है और दूसरों के पास करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति हो, तथापि ममत्वभाव अल्प हो तो वह नरक में नहीं जाता अर्थात् निमित्त के संयोग पर आधार नहीं है, किन्तु उपादान के भाव पर आधार है; यदि गृहस्थ हिंसादिक तीव्रपापकषाय न करे तो नरक में नहीं जाता और अज्ञानी त्यागी भी यदि तीव्र कलुषित परिणाम करे तो वह नरक में जाता है। क्षायिक सम्यग्दृष्टि धर्मात्मा चक्रवर्ती राजा हो और लड़ाई में हजारों मनुष्यों के संहार के बीच खड़ा हो तथा स्वयं भी बाण छोड़ रहा हो ; तथापि यदि उसके अन्तरंग में यह प्रतीति है कि यह मेरा स्वरूप नहीं है, मैं पर जीव का कुछ भी करने में समर्थ नहीं हूँ, मेरी अस्थिरता के कारण मुझे रागवृत्ति आ जाती है, वह भी मेरा स्वरूप नहीं है ऐसा भान होने से वह नरक में नहीं जाता; इसलिए स्पष्ट है कि पर जीव की हिंसा नरक का कारण नहीं है, किन्तु अन्तरंग का अशुभभाव ही नरक का कारण है। निमित्त ने बारहवें दोहे में यह तर्क उपस्थित किया था कि निमित्त से मूल में भूल पाप होता है', किन्तु अब वह यह तर्क उपस्थित करता है कि 'निमित्त से पुण्य होता है और जीव सुखी होता है' यथा - दया- दान पूजा किये, जीव सुखी जग होय । जो निमित्त झूठो कयो, यह क्यों माने लोय ।। १४ ।। अर्थ :- निमित्त कहता है कि दया, दान, पूजा करने से जीव जगत में सुखी होते हैं। यदि आपके कथनानुसार निमित्त झूठा हो तो लोग उसे क्या मानेंगे ? पर जीव की दया, द्रव्यादि का दान और भगवान की पूजा इत्यादि से जीव के पुण्यबंध होता है। इसप्रकार दया में पर जीव का निमित्त, दान में द्रव्य का निमित्त और पूजा में भगवान का निमित्त है तथा इस पर निमित्त से जीव पुण्य को बाँधकर जगत में सुखी होता है। आप कहते हैं कि उपादान स्वतंत्र है और पुण्य से या परवस्तु से सुखी नहीं होता है, किन्तु यह तो प्रत्यक्ष है कि दया इत्यादि से पुण्य करे तो अच्छी सामग्री मिलती है और जगत में जीव सुखी होता है। यदि निमित्त से सुख न मिलता हो तो यह कैसे बने ? यह निमित्त पक्ष का तर्क है। इसमें तीन प्रकार से निमित्त का पक्ष स्थापित हुआ १. पर निमित्त से पुण्य होता है। २. पुण्य करने से बाह्य वस्तु मिलती है। ३. बाह्य वस्तु मिलने से जीव को सुख मिलता है। इसप्रकार समस्त जगत पुण्य के संयोग में अपने को सुखी मानता है, इसलिए निमित्त का ही बल है। उपादान पक्ष ने निमित्त पक्ष के अभी तक के समस्त तर्कों को जिसप्रकार खण्डित किया है, उसीप्रकार इस तर्क का भी खण्डन करता हुआ कहता है। कि - दया, दान, पूजा भली, जगत माहिं सुखकार । जहँ अनुभव को आचरण, तहँ यह बन्ध विचार ।। १५ ।।

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