Book Title: Mool me Bhool Author(s): Parmeshthidas Jain Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 60
________________ नाहिं अविनाशी आत्मारूपी कहा जा पर अनन्त संसार में आस्रव खौलते आकुलित होकर दुःख फिर्यो तू स्वयं में में कोई समर्थ बाद के हार्यो जीव ने अन्त नवरन्यो स्थिरता करना होगा सब झोके rak दुर्लक्ष्यPage Navigation
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