Book Title: Mool me Bhool
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 59
________________ अनिर्णीत पलट्यो CbLobbmul भूल हैं सम्यक्वान बड़ाई बड़ाई की से आत्मा स्वयं आत्मा की वह सम्यक् प्रतीति है रहें निमित्त प्रकारान्तर जाहिं स्वभाववाला कयो पुण्यभाव मनुष्य फंसा अवस्था में होती है चन्द्रमा एक ही विन ना उससे ) जोड़ान बड़यो रक्ष संसार का ही कहते है हैं दुःख इसके

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