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अनिर्णीत पलट्यो
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भूल हैं
सम्यक्वान
बड़ाई बड़ाई
की
से
आत्मा स्वयं
आत्मा की वह सम्यक् प्रतीति है
रहें
निमित्त प्रकारान्तर जाहिं
स्वभाववाला
कयो
पुण्यभाव
मनुष्य
फंसा
अवस्था में होती है
चन्द्रमा एक ही
विन ना
उससे
)
जोड़ान
बड़यो
रक्ष
संसार का ही
कहते
है
हैं
दुःख इसके