Book Title: Mool me Bhool
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 30
________________ मूल में भूल आहार क्या करेगा ? आठों पहर खान-पान और आराम से शरीर की चाकरी करने पर भी जीव क्यों मर जाते हैं ? आहार के निमित्त को लेकर उपादान नहीं टिकता एक वस्तु में दूसरी वस्तु के कारण कुछ भी नहीं होता, इसलिए हे निमित्त ! तेरी बात गलत है। भोजन करने के लिए बैठा हो, भोजन करके पेट भर लिया हो, हाथ में ग्रास मौजद हो. फिर भी शरीर छूट जाता है। यदि आहार से शरीर टिकता हो तो खानेवाला कोई नहीं मरना चाहिए और सभी उपवासी मर जाना चाहिए; परन्तु आहार करनेवाले भी मरते हैं और बिना आहार के भी पवनभक्षी वर्षों तक जीते रहते हैं; इसलिए आहार के साथ जीवन-मरण का कोई सम्बन्ध नहीं है। आहार का संयोग उन परमाणुओं के कारण से आते हैं और शरीर के परमाणु शरीर के कारण टिकते हैं। आहार और शरीर दोनों के परमाणु भिन्न हैं। आहार की तरह दवा के कारण भी शरीर नहीं टिकता और न दवा के कारण रोग ही दूर होता है। हजारों आदमी औषधियाँ लाते हैं, खाते हैं; किन्तु रोग नहीं मिटता और दवा के बिना भी रोग मिट जाता है। यह तो स्वतंत्र द्रव्य की स्वतंत्र अवस्थायें हैं। एक वस्तु के कारण दूसरी वस्तु में कार्य हो - यह बात पवित्र जैनदर्शन को मान्य नहीं है; क्योंकि वस्तुस्थिति ही वैसी नहीं है। जिसे ऐसा विपरीत विश्वास है कि एक द्रव्य के कारण दूसरे द्रव्य का कार्य होता है, वह महा अज्ञानी है, उसे वस्तुस्थिति की खबर नहीं है, वह जैनधर्म को नहीं जानता। अब निमित्त तर्क उपस्थित करता है - सूर सोम मणि अग्नि के, निमित्त लखें ये नैन । ___ अंधकार में कित गयो, उपादान दृग दैन ।।२६।। अर्थ :- निमित्त कहता है - सूर्य, चन्द्रमा, मणि अथवा अग्नि का निमित्त हो तो आँख देख सकती है। यदि उपादान देखने का काम कर सकता हो तो अन्धकार में उसको देखने की शक्ति कहाँ चली जाती है (अन्धकार में मुल में भूल आँख से क्यों नहीं दिखाई देता ?)।। तू सर्वत्र 'मैं-मैं' करता है और यह कहता है कि सब कुछ मेरी (उपादान की) शक्ति से ही होता है; परन्तु हे उपादान ! देखने का काम तो तू सूर्य, चन्द्र, मणि अथवा दीपक के निमित्त से ही कर सकता है। यदि तेरे ज्ञान से ही जानना होता हो तो अँधेरे में तेरा ज्ञान कहाँ चला जाता है ? दीपक इत्यादि के बिना तू अँधेरे में क्यों नहीं देख सकता ? और फिर बिना पुस्तक के तुझे ज्ञान क्यों नहीं होता? क्या बिना शास्त्र के मात्र ज्ञान में से ज्ञान होता है ? देखो, यदि सामने समयसार शास्त्र न रख दिया जाये तो क्या इसके बिना ज्ञान होता है ? यदि ज्ञान से ही ज्ञान हो तो सामने शास्त्र क्यों रखते हो ? तात्पर्य यह है कि सर्वत्र मेरा ही बल है। तू अपने 'अहं' को छोड़ और यह स्वीकार कर कि मेरी भी शक्ति है - ऐसा निमित्त का तर्क है। उपादान का उत्तर - सूर सोम मणि अग्नि जो, करे अनेक प्रकाश । नैन शक्ति विन ना लखें, अंधकार सम भास ।।२७।। अर्थ :- उपादान कहता है कि सूर्य, चन्द्रमा, मणि और दीपक अनेक प्रकार का प्रकाश करते हैं, तथापि देखने की शक्ति के बिना कुछ भी नहीं दिखाई देता; सब अंधकार-सा भासित होता है। अरे भाई ! किसी परवस्तु के द्वारा ज्ञान नहीं हो सकता, ज्ञान का प्रकाश करनेवाला तो ज्ञानस्वरूपी आत्मा है और प्रकाश इत्यादि का प्रकाशक भी आत्मा ही है। सूर्य इत्यादि से ज्ञान प्रकाशित नहीं होता अर्थात् पर निमित्त से आत्मा ज्ञान नहीं करते। हे निमित्त ! यदि सूर्य, चन्द्रमा या दीपक से दिखाई देता हो तो अँधे के पास उन सबको रखकर उसमें देखने की शक्ति आ जानी चाहिए, किन्तु सूर्य इत्यादि सब कुछ होने पर भी अंधे को क्यों नहीं दिखाई देता? उपादान में ही जानने की शक्ति

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