Book Title: Mokshshastra Author(s): Umaswati, Umaswami, Pannalal Jain Publisher: Digambar Jain Pustakalay View full book textPage 4
________________ । [३] अनुवादकके दो शब्द "तत्त्वार्थसूत्र'" जैनागमका अत्यन्त प्रसिद्ध शास्त्र है। इसकी रचनाशैलीने तात्कालिक तथा उसके बादके समस्त विद्वानोंको अपनी ओर आकृष्ट किया है। यही कारण है कि उसके उपर पूज्यपाद, अकलंकस्वामी तथा विद्यानन्द आदि आचार्योने महाभाष्य रचे है। तत्त्वार्थसूत्र जिस तरह दिगम्बर आम्नायमें सर्व मान्य है उसी तरह श्वेताम्बर आम्नायमें भी सर्व मान्य है। इस ग्रन्थमें आचार्य उमास्वामीने पथभ्रांत संसारी पुरुषोंको मोक्षका सच्चा मार्ग बतलाया है-“सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः" अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनोंकी एकता ही मोक्षका मार्ग है। मोक्षमार्गका प्ररूपण होनेके कारण ही मोक्षका दूसरा नाम 'मोक्षशास्त्र' भी प्रचलित हो गया है। मोक्षमार्ग-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का इस ग्रन्थमें विशद विवेचन किया गया है। प्रथम अध्यायमें सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान विवेचन है। दूसरे अध्यायमें सम्यग्दर्शनके विषयभूत जीवतत्वके असाधारण भाव, लक्षण, इन्द्रियां, योनि, जन्म तथा शरीरादिका वर्णन है। तीसरे अध्यायमें जीवतत्त्वका निवासस्थान बतलानेके लिये नरकलोक और मध्यलोकका सुन्दर प्ररूपण है। चतुर्थ अध्यायमें ऊर्ध्वलोक तथा चार प्रकारके देवोंके निवासस्थान, भेद, आयु, शरीर आदिका वर्णन किया गया है। पाँचवें अध्यायमें अजीव तत्त्वका सुन्दर निरूपण है। छठवें अध्यायमें आस्रव का वर्णन करते हुए आठों कर्मोके आस्रवके कारण बतलाये हैं जो सर्वथा मौलिक हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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