Book Title: Mokshmarg Ek Adhyayan
Author(s): Rajesh Jain
Publisher: Rajesh Jain

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Page 11
________________ "प्रस्तावना अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो के संदेश एंव जैन दर्शन को समझकर मोक्ष मार्ग का अध्ययनएक चुनौती पूर्ण कार्य था। बच्चपन के संस्कार, शास्त्रों का अध्ययन, गुरूओं का समागम, शंका समाधान, ध्यान और तप के चलते यह कार्य करने मे कुछ सफल रहा। अर्थ, धर्म, कर्म, एंव मोक्ष पुरूषार्थ हैं। ज्ञान और अनुभव के द्वारा इन सब को पाया जा सकता है, स्त्री, पुरूष एंव नपुंसक मे कोई भेद नही है। ज्ञान संग वैराग्य मोक्ष मार्ग की प्रेरणा है। _“अनुभव चिंतामनि रतन, अनुभव है रसकूप। अनुभव मारग मोखकौ, अनुभव मोख सरूप"। अर्थात, अनुभव चिंतामणि रत्न है, शान्ति रस का कुआँ है, मुक्ति का मार्ग है और मुक्ति स्वरूप है।। "ग्यान सकति वैराग्य बल, सिव साधैं समकाल। ज्यौं लोचन न्यारे रहैं, निरखें दोउ नाल"।। अर्थात, ज्ञान - वैराग्य एक साथ उपजने से सम्यग्दृष्टि जीव मोक्ष मार्ग को साधते हैं, जैसे कि दोनों नेत्र अलग-अलग रहते है पर देखने का काम एक साथ करते हैं। पाप एंव पुण्य दौनौ ही से कर्मो का बंध होता है।कर्मो की निर्जरा ही मोक्ष है। ज्ञान, ध्यान और तप मोक्ष मार्ग की शुरूआत हैं। अणुव्रत मोक्ष मार्ग की पहली सीढी हैं। मेरा लचीला व्यवहार, पहनावा आदि देखकर कोई भी मुझे रसिक समझ लेता हैं। मै कहना चाहता हूँ कि अध्यातम एंव श्रृंगार रस दौनौ ही मुझ मे हैं। मेरा रसिक व्यवहार केवल मेरी पत्नी के लिए है और मै शील ब्रह्मर्चय व्रत का पालन करता हूँ।

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