Book Title: Mokshmarg Ek Adhyayan
Author(s): Rajesh Jain
Publisher: Rajesh Jain

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Page 27
________________ 1.मिथ्यात्व पाँच प्रकार का कहा गया है। एकान्त मिथ्यात्व विपरीत मिथ्यात्व विनय मिथ्यात्व संशय मिथ्यात्व अज्ञान मिथ्यात्व || एकान्त मिथ्यात्व:- जो व्यक्ति किसी एक नय मे लीन होकर अपने को तत्व ज्ञानी समझता है वोएकान्तवाद साक्षात् मिथ्यावादी है। विपरीत मिथ्यात्व:- जो व्यक्ति स्नान, छूआछूत आदि में धर्म बतलाता है वो पाखंडी विपरीत मिथ्यावादी है। विनय मिथ्यात्व:- जो व्यक्ति विवेक रहित सबकी भक्ति वन्दना करता है वह जीव विनय मिथ्यावादी है। संशय मिथ्यात्व:- जो व्यक्ति चंचल चित्त रहता है और स्थिर चित्त होकर पदार्थ का अध्ययन नही करता वह संशय मिथ्यावादी है। अज्ञान मिथ्यात्व:- जो व्यक्ति शारीरिक कष्ट से परेशान रहता है और सदैव तत्व ज्ञान से अनभिज्ञ रहता है, वह जीव अज्ञानी है, पशु के समान है। विशेषः- जोजीव मिथ्यात्व गुणस्थान से चढकर सम्यक्त्व का स्वाद लेता है और फिर मिथ्यात्व मे गिरता है वह सादि मिथ्यावादी है, जिसने मिथ्यात्व का कभी अनुदय नहीं किया वह आत्मज्ञान से शून्य अनादि मिथ्यात्वी है। 2.रस नव प्रकार के होते है। श्रृंगार रस वीर रस करूणा रस हास्य रस रौद्र रस वीभत्स रस भयानक रस अद्रभुद रस शान्त रस जब ह्रदय में सम्यग्ज्ञान प्रगट होता है, तब एक ही रस मे नव रस दिखाई देते हैं, और शान्तरस मे आत्मा विश्राम लेता हैं। शान्तरस को अध्यातम रस भी कहते हैं। 3.बह्मर्चय की नव वाड:• महिलाओं के समागम में रहना • महिलाओं के पलंग पर सोना बैठना • काम कथा पढना, सूनना • कामोतेजक मूवी को देखना • भूख से अधिक गरिष्ट भोजन करना • पूर्व काल में भोगे हुए भोग-विलासों का स्मरण करना • मेकप से शरीर को आवश्यकता से अधिक सजाना इसके त्याग को जैनमत में बह्मर्चय की नव वाड कहा है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र को समझने के लिए मिथ्यात्व, नव रस, बह्मर्चय की नव वाड को समझना आवश्यक है। K27

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