Book Title: Mokshmarg Ek Adhyayan
Author(s): Rajesh Jain
Publisher: Rajesh Jain

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Page 19
________________ लोकः- अघोलोक, मध्यलोक एंव ऊधर्वलोक जम्बू द्वीपः- समुंद्रो के मध्य में एक लाख योजन विस्तार वाला जम्बू द्वीप है, जिसके मध्य में नाभि के | समान सुमेरू पर्वत है। इस जम्बू द्वीप मे भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत ये सात क्षेत्र हैं। पद्म, आदि सरोवरों के कमलों पर क्रम से श्री, ह्रीं, धृर्ति, कीर्ति, बुद्धि, और लक्ष्मी ये छह देवियां सामानिक और पारिषद जाति के देवों के साथ निवास करती हैं। भरत एंव ऐरावत क्षेत्रों मे उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के छह कालों द्वारा मनुष्यों की आयु, काम, भोगोपभोग मे वृद्धि और हानि होती रहती हैं। भरत एंव ऐरावत क्षेत्रों को छोडकर शेष पाँच छेत्रों में स्थिति ज्यों की त्यों नित्य एक सी रहती हैं उसमें काल का परिवर्तन नही होता। गतियाः- नरक, तिर्यंच, मनुष्य एंव देव ||देवः- देव चार प्रकार के होते हैं। भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी, और कल्पवासी। भवनवासी व्यन्तर, ज्योतिषी, तथा सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के देव मनुष्य और तिर्यन्चों की भांति शरीर से काम सेवन करते हैं। तीसरे स्वर्ग से लेकर सोलहवें स्वर्ग तक कुछ में देवियों के स्पर्श से कुछ मे रूप देखने से कुछ मे शब्द सुनने से तथा कुछ स्वर्गों में देव और देवियां मन मे एक दूसरे के स्मरण मात्र से तृप्त हो जाते हैं। सोलह स्वर्गों से ऊपर देव काम सेवन से रहित होते हैं। सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और तारा ये पाँच भेद ज्योतिषी देवों के है। पांचवे ब्रह्मलोक नामक स्वर्ग में लौकान्तिक देव रहते हैं जो स्वर्ग से चय कर मनुष्य का भव धारण करके मुक्त हो जाते है । विमानवासी अहमिन्द्र मनुष्य के दो भव तथा अहमिन्द्र एक भव धारण करके ही मोक्ष चले जाते हैं। तिर्यन्च सम्पूर्ण लोक मे व्याप्त हैं। सम्बन्धित विषय को विस्तार से पढने के लिए तत्वार्थ सूत्र का पेज नम्बर 31-37 देखें। मनुष्यः- [:-आर्य और मलेच्छ ये दो प्रकार के मनुष्य होते हैं। जो गुणों से सम्पन्न हो उन्हें आर्य कहते हैं। जो आचार विचार भ्रष्ट हों, घर्म- कर्म का कुछ विवेक न हो, निर्लज्जता पूर्वक चाहे जो कुछ बोलतें हों उन्हें मलेच्छ कहा गया हैं। आर्य भी दो प्रकार के होते हैं, ऋध्दि प्राप्त और दूसरे ऋध्दि रहित। काल: उत्सर्पिणी प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के छः-छः भेद होते हैं। अवसर्पिणी

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