Book Title: Mohanlalji Arddhshatabdi Smarak Granth
Author(s): Mrugendramuni
Publisher: Mohanlalji Arddhashtabdi Smarak Granth Prakashan Samiti

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Page 336
________________ શ્રી મેહનલાલજી જ્ઞાનભંડાર, સૂરતકી તાડપત્રીય પ્રતિયાં अपनी प्रथम जेसलमेर यात्रा में देखी थी । इनमें से स्वर्गीय चीमनलाल दलाल और पं० लालचन्द गांधी सम्पादित 'जेसलमेर भांडागारीय सूची' में बड़े भण्डार और तपागच्छ भण्डार की ताडपत्रीय प्रतियों का भी विवरण छपा था । बड़े उपासरे के पंचायती भण्डार और आचार्य शाखा भण्डार की ताडपत्रीय प्रतियों की जानकारी हमने सर्वप्रथम प्रकाशित की। पाटण, खम्भात, पूना की प्रतियों का विवरण प्रकाशित हो ही चुका हैं। दक्षिण भारतमें तो ताडपत्रो पर उत्कीर्ण-टंकित लिपि की लक्षाधिक लक्षाधिक प्रतियाँ सुरक्षित है । पर उत्तर भारत में जन भण्डारों के अतिरिक्त अन्य संग्रहालयों में ताडपत्रीय प्रतिया क्वचित् ही है। इसलिये उपर्युक्त प्रसिद्ध जैन भण्डारों के अतिरिक्त अन्य छोटे मोटे जैन भण्डारों में जो भी ताडपत्रीय प्रतिया सुरक्षित है उन की जानकारी प्रकाश में आना अत्यावश्यक है । उन प्रतियों में बहुतसी ऐसी रचनाएं भी है । जिन की अन्य कोई भी प्रति कहीं भी प्राप्त नहीं है । वे तो महत्त्वपूर्ण है ही पर प्रसिद्ध ग्रन्थों की भी प्राचीन और शुद्ध प्रतियाँ इन ग्रन्थों के शुद्ध एवं प्राचीन पाठ के निर्णय तथा सम्पादन के लिए बड़े महत्त्व की है। अभी अभी मेरा सहयोगी भतीजा भंवरलाल सूरत गया तो श्री मोहनलालजी जैन ज्ञानभण्डार में उसे ताडपत्रीय प्रतियाँ देखने को मिली । थोडे समय में उसका जो भी विवरण वह लिख सका वह उस ने मुझे लिख भेजा है और उसे इस लेख में प्रकाशित किया जा रहा है । पूज्य निपुणमुनिजी की कृपा से कुलकादि फुटकर ३४ रचनाओं की एक संग्रह प्रति तो वह अपने साथ कलकत्ते ले गया और केवल ३-४ दिन में ही उस की प्रेस: कोपी उसने स्वयं कर ली, जो अभी हमारे संग्रह में है । अब उन आठों प्रतिया का विव. रण नीचे दिया जा रहा है १ विविध तीर्थकल्प-२. जिनप्रभसूरि, पत्र १३७, संवत् १४४३, पाटण में लिखित । इस प्रति के साथ प्रशस्ति के अनुसार ज्योतिष करण्ड विवृत्ति एवं चैत्यवंदनचूर्णि की प्रति भी लिखी गई थी, पर पता नहीं वे अब किसी अन्य भण्डार में है या नष्ट हो गई। त्रुटित प्रशस्ति इसी प्रकार है:____-श्व मलयसिंहाख्य' देवगुरुषु भक्तौ डेरंडकनगरमुख्यतम डणू तस्य च भार्या साऊ धम्मासक्ता सुशीलसंयुक्ता.........सहिताश्च खेतसिंहाभिध: मेघाभ्याम् च सुगुणाभ्याम् ।४। पुव्यस्तथा च देऊ सारु धरणूष्टमश्च पांचूश्च । रुडी मातू नाम्नी स प्रति (१) सशीलसंयुक्ताः 1५। श्रीमत्तपागण्यधिपसूरि श्री देवसुन्दरगुरूणां उपदेशतो छद्मस्था...धर्मोपरिज्ञाय ।६। साऊ सुश्राविका सौव पुत्रपुत्रो परीवृता पत्युर्मलयसिंहस्य श्रेयसे शुद्धवासना |७| ज्योतिःकरण्डविवृति तीर्थकल्पांश्च भूरिशः चैत्यवन्दनचूादि श्रीताडपुस्तकत्रये ।८। पत्तने लिखिते...ने वादियेऽब्धि भूमिते १४४३ वत्सरे लेख्या मास नागशर्म द्विजन्मना ।९। शिवमस्तु । २ योगशास्त्र-स्वोपज्ञवृत्ति, हेमचन्द्र पत्र १०३, प्रशस्ति त्रुटित "...काइत्थ...कीतिपालेन लिखितम् ।” ३ योगशास्त्र हेमचन्द्र, पत्र ८२ संवत् १२५६ लिखित । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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