Book Title: Mohanlalji Arddhshatabdi Smarak Granth
Author(s): Mrugendramuni
Publisher: Mohanlalji Arddhashtabdi Smarak Granth Prakashan Samiti

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Page 357
________________ २० શ્રી મેહનલાલજી અર્ધશતાબ્દી મધ प्रमाणवार्तिक ग्रन्थ की रचना की गई है. इस पर अनेकानेक टीकाएँ एवं प्रटीकाएँ संस्कृतभाषा में लिखी गई हैं. किन्तु वर्तमान में उसका थोडा सा ही अंश संस्कृत में मिलता है. अवशिष्ट अंश तिब्बती अनुवाद के रूप में आज भी बडे विस्तार से मिलता है. धर्मकीर्ति का दुसरा बडे महत्त्व का ग्रन्थ प्रमाणविनिश्चय है. यह ग्रन्थ गद्य-पद्य उभ. यात्मक है. इस पर धर्मोत्तर की अतिविस्तृत टीका मिलती है और ज्ञानश्रीभद्र की एक छोटी वृत्ति भी मिलती है. किन्तु इस प्रमाणविनिश्चय सम्बन्धी सभी साहित्य का तिब्बती भाषानुवाद ही मिलता है. _ विविध विषयक बौद्धसाहित्य के सेंकडों प्रन्थों का अनुवाद तिब्बती भाषा में आज से सेंकडों वर्ष पूर्व हो चुके है. यद्यपि संस्कृत बौद्ध साहित्य का बहुत कुछ अंश आज संस्कृत भाषा में नष्ट हो चुका है तो भी तिब्बती भाषा में अनुवादरूप से संगृहीत उन ग्रन्थों के आधार से इस क्षति की कुछ अंश से पूर्ति हो सकती है. .. जैन दार्शनिक साहित्य के अध्ययन करते समय ऐसे अनेक अनेक प्रसंग मुझे प्राप्त हुए हैं कि जहां पर तिब्बती भाषानुवादों से मुझे पर्याप्त सहाय मिली है. जैनाचार्य मल्लवादि क्षमाश्रमण प्रणीत द्वादशार नयचक्र के संशोधन एवं सम्पादन में दिङ्नागरचित प्रमाणसमुच्चय कारिका और प्रमाणसमुच्चयवृत्ति एवं इन दोनों पर जिनेन्द्रबुद्धिरचित विशालामलवती के तिब्बती भाषानुवादों का हमने काफी उपयोग किया है. भावनगर की जैन आत्मानंद सभा से अल्प समय में प्रकाशित होनेवाले इस द्वादशारनयचक्र प्रन्थ के प्रथम विभाग के टिप्पणों में परिशिष्ट रूप से प्रमाणसमुच्चय के प्रथम परिच्छेद के महत्त्व के अंश का तिब्बती भाषानुवाद पर से हमने संस्कृत में अनुवाद भी किया है. साथ साथ प्रमाणसमुच्चयवृत्ति और विशालामलवती का संस्कृत अनुवाद भी तिब्बती भाषानुवाद के आधार पर वहां हमने दिया है. - धर्मकीर्ति के प्रमाणवार्तिक और प्रमाणविनिश्चय ये दोनों पृथक् पृथक् ग्रन्थ हैं. फिर भी एक कर्तृक होने से कुछ ऐसी कारिकाएँ भी हैं कि जो समान रूप से दोनों में पाई जाती हैं. यही कारण है कि भिन्न भिन्न दार्शनिक साहित्य में उध्धृत किये गये धर्मकीर्ति के अवतरणों में कुछ ऐसे भी अवतरण हैं कि जो प्रमाणवार्तिक और प्रमाणविनिश्चय दोनों में पाये जाते हैं. लेकिन ऐसे भी अनेक अवतरण धर्मकीर्ति के नाम पर मिलते हैं कि जिन का पता धर्मकीर्ति के उपलब्ध संस्कृत ग्रन्थों में नहीं मिलता, मात्र प्रमाणविनिश्चय के तिब्बती भाषानवाद में मिलता है. प्रमाणविनिश्चय बहुत बडा आकर ग्रन्थ है. यहां हम उस के कुछ कळ अंश का तिब्बती भाषानुवाद और उस का संस्कृत अनुवाद देंगे कि जिन का अंशतः या पूर्णतया अवतरण दार्शनिक साहित्य में पाया जाता है. यहां पर एक बात ध्यान में रखनी चाहिये कि तिब्बती भाषानुवाद करनेवाले पण्डितो में कई जगह पर संस्कृत ग्रन्थों के रहस्य न समझने के कारण भाषानुवाद करते समय गलत भाषानुवाद भी कर दिये है, कभी कभी जिस संस्कृत आदर्श पर से भाषानुवाद किया हो उस आदर्श में ही यदि पाठ अशुद्ध हो तो भी भाषानुवाद वहां अशुद्ध हुआ है जिन लकडे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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