Book Title: Mohanlalji Arddhshatabdi Smarak Granth
Author(s): Mrugendramuni
Publisher: Mohanlalji Arddhashtabdi Smarak Granth Prakashan Samiti

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Page 356
________________ १८ જૈન દાર્શનિક સાહિત્ય એર પ્રમાણુવિનિશ્ચય की है-प्रमाणवार्तिक, २ प्रमाणविनिश्चय, ३ न्यायबिन्दु, ४ हेतुबिन्दु, ५ सम्बन्धपरीक्षा, ६ सन्तानान्तरसिद्धि, ७ वादन्याय.' ____इन में प्रमाणवार्तिक, न्यायबिन्दु और वादन्याय ये तीनों ग्रन्थ संस्कृत भाषा में आज तक प्रसिद्ध हो चुके हैं प्रमाणविनिश्चय मूल संस्कृत भाषा में उपलभ्य नहीं है. उस का तिब्बती अनुवाद ही मिलता है. हेतुबिन्दु भी मूल संस्कृत में नहीं मिलता है. उसका भी तिब्बती भाषानुवाद ही मिलता है. किन्तु अर्चटकृत हेतुबिन्दु टीका संस्कृत में मिलती है. उस के अन्तर्गत मूल के प्रतीकों के आधार से और तिब्बती अनुवाद के आधार पर किया गया स्थूल (Rough) संस्कृत भाषानुवाद बड़ोदा की गायकवाड ओरिएण्टल सीरीज से हेतुबिन्दु टीका के साथ प्रसिद्ध हो चुका है. सम्बन्धपरीक्षा २५ कारिका प्रमाण ग्रन्थ है और उस पर धर्मकीर्ति की खवृत्ति भी है. इन दोनों का तिब्बती भाषानुवाद ही मिलता है.' किन्तु स्याद्वादरत्नाकर और प्रमेयकमलमार्तण्डः आदि जैन ग्रन्थों में सम्बन्धपरीक्षा की २२ कारिकाएं विवेचन के साथ उध्धृत की है. इस से यह मूल ग्रन्थ करीब करीब पूर्ण रूप से जैन ग्रन्थों में सुरक्षित रह गया है. धर्मकीर्तिरचित सम्बन्धपरीक्षावृत्ति का उद्धार भी जैन ग्रन्थों की सहाय से ठीक रूप से होने की शक्यता है. सम्बन्धपरीक्षा की २५ कारिकाओं का तिब्बती भाषानुवाद और २२ कारिकाओं का मूल संस्कृत स्वरूप पूज्य गुरुदेव की कृपासे हमने राजेन्द्रस्मारक प्रन्थ में कुछ वर्षों से पूर्व प्रकाशित कर दिया है और उस में स्याद्वादरत्नाकर आदि प्रन्थों में से आधारभूत उल्लेख भी प्रकाशित किये हैं...... ____ सन्तानान्तरसिद्धि में एक मात्र कारिका है और उस पर विस्तार से गद्यरूप में धर्मकीर्ति का विवरण है. इस का तिब्बती अनुवाद ही मिलता है. फिर भी काश्मीर राज्य की ओर से प्रकाशित 'नरेश्वर परीक्षा' नामक ग्रन्थ में (पृ० ६२ में) सन्तानान्तरसिद्धि की प्रथम कारिका उध्धृत की गई है. इस से उस का तो मूल संस्कृत स्वरूप में पता मिलता है. वह कारिका निम्न प्रकार है "बुद्धिपूर्वा क्रियां दृष्ट्वा स्वदेहेऽन्यत्र तद्ग्रहात् । ज्ञायते यदि धीश्चित्तमात्रेऽप्येष नयः समः ।। धर्मकीर्ति के इन सभी ग्रन्थों में प्रमाणवार्तिक सब से बडे महत्त्व का ग्रन्थ है. दिङनागरचित प्रमाणसमुच्चय के कुछ अंशों का विवरण करने के लिये स्वतन्त्र व्याख्या रूप से इस १. धर्मकीर्ति के इन सभी संस्कृत ग्रंथों के तिब्बती भाषानुवाद तंजूर' म्दो चे (=९५) में मुद्रित हुए हैं. २. इस के पर विनीतदेव और शंकरानन्द रचित वृत्तिओं का तिब्बती भाषानुवाद पेकींग एडीशन के तंजूर म्दो cx॥ (११२) में मिलता है. पृ. १-२६ और २७-४४ । ३. काश्मीर संस्कृत सीरीज नं. ४५ । ४. इस का तिब्बती अनुवाद इस प्रकार मिलता है रङ् लुस् ब्लो स्डोन् 'ऽयो बयि ॥ व्यं ब मथोङ् नस गशन् ल दे॥ ऽजिन् ‘फ्यिर् गल्ते ' ब्लो शेस्'ऽग्युर् ॥ सेम्स् चम् ल यङ् छुल्ऽ दि मछुड्स् ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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