Book Title: Mohanlalji Arddhshatabdi Smarak Granth
Author(s): Mrugendramuni
Publisher: Mohanlalji Arddhashtabdi Smarak Granth Prakashan Samiti

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Page 342
________________ શ્રી મોહનલાલજી જ્ઞાનભંડાર, સૂરતકી તાડપત્રીય પ્રતિયાં ५ कृतियों में पउमसिंह गणिका नाम है। यह रत्नसिंहसूरि का आचार्यपद पूर्व का नाम है या अन्य कवि है, अन्वेषणीय है। __ इन में से कई रचनाएं श्री ऋषभदेव केसरीमल पेढी से प्रकाशित 'प्रकरण समुच्चय' में नम्बर १, २, ३, ४, १५, १६, १७, १८, १९, तो प्रकाशित हो चुकी है । रत्नसिंहसूरि की ३, ४, और भी रचनाएं प्रकरण समुच्चय में छपी है जो इस प्रति में नहीं है। फिर भी इस प्रति में कई ऐसी महत्त्वपूर्ण रचनाएं है जो विविध दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। उदाहरणार्थ-धर्मसूरि संबंधी रचनाएं और कतिपय स्तवन उन में से धर्मसूरिगुणस्तुति षट्त्रिंशिका दो गाथाएं धर्मसूरि संबंध में ऐतिहासिक तथ्य प्रस्तुत करती है उनके अनुसार ९ वर्ष की अवस्था में उन्होंने दीक्षा ली, ९ वर्ष सामान्य साधु के पर्याय में रहे और ६० वर्ष सूरिपद पर। इस तरह कुल ७८ वर्ष की आयु में संवत् १२३७ के भादरवा सुदि ११ को वे स्वर्ग को प्राप्त हुए। नव नव वरिसे ठाउं, गिहवासे साहु भावएज्जाए । सद्धिं सूरिपयंमी, अडसयरिं सव्व-आउमि ॥३३।। बारस सत्ततीसे, सुद्धाए एकारसीई भद्दवए । चंद दिणे सामि तुम, सुरमंदिरमंडणं जाओ ॥३४॥ उपर्युक्त रचनाओं में से कुछ प्राकृत, कुछ संस्कृत और कुछ अपभ्रंश में है। रचना संवत् के उल्लेखवाली तो केवल एक ही रचना है “ आत्मानुशासन" जो संवत् १२३९ वैशाख सुदि ५ को अणहिलपुर पाटण में रची गई है । नेमिनाथ स्तव में अणहिलवाड को स्वर्गपुरि बतलाया है। अणहिलपुर रथयात्रा स्तवन में कुमरनलिछ और बावत्तरि जिन स्तवन में कुमरविहार का महत्त्वपूर्ण उल्लेख है। कि १७ 90OYAC09 2050SET MERO (OCON । KARNA 2URIO Cal . 19.069 .. Nas Roho Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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