Book Title: Mohanlalji Arddhshatabdi Smarak Granth
Author(s): Mrugendramuni
Publisher: Mohanlalji Arddhashtabdi Smarak Granth Prakashan Samiti

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Page 349
________________ १४ શ્રી મોહનલાલજી અર્ધશતાબ્દી થી पोत्तओ वृषणः ६/६२-हिन्दी पोत्ता । बोक्कड़ो छागः ६/९६-ब्रजभाषा बोकरा । माओ ज्येष्ठभगिनिपतिः ६/१०२ बुन्देली में मऊआ । मम्मी, मामी, मातुलानी ६/११२-हिन्दी की सभी बोलियों में मामी तथा प्यार की बोली में मम्मी। सोहणी सम्मार्जनी ८/१७-हिन्दी में सोहनी । हई अस्थि ८/५९–हिन्दी में हड्डी, हाड़ । हरिआली दूर्वा ८/६४-हिन्दी में हरिआलो । तीसरी विशेषता यह है कि इस कोश में कुछ ऐसे शब्द भी संकलित है, जिन के समकक्ष अन्य किसी भाषा में उन अथों को अभिव्यक्त करनेवाले शब्द नहीं हैं । उदाहरण के लिए चिच्चो ३/९ शब्द चिपटीनाक या चिपटीनाकवाले के लिए, अज्झेली १/७ शब्द दूध देने वाली गाय के लिए, जंगा ३/४० गोचरभूमि (Pasture Land) के लिए, अण्णाणं १७ शब्द विवाह के समय वरपक्ष की ओर से बधू को दी जानेवाली भेंट के लिए, अंगुट्ठी १/६ शब्द सिर गुन्थी के लिए, अणुवजिअ जिस की सेवा शुश्रूषा की जाती है, उस के लिए, कक्कसो २/१४ दधि और भात मिलाकर खाने या मिले हुए दही-भात के लिए, उलूहलिओ १/११७ शब्द उस व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होता है जो कभी भी तृप्ति को प्राप्त नहीं होता, परिहारिणी ६/३१ शब्द उस भैंस के लिए आया है जो भैंस पांच वर्षों से प्रजनन नहीं कर रही है, अहिविण्ण १/२५ शब्द उस स्त्री के लिए आया है जिस के पति ने दूसरी स्त्री से विवाह किया है, आइप्पणं १/७४ शब्द उत्सव के समय घर को चूने से पुतवाने के अर्थ में, पड़ी १/१ पहले पहल बच्चा देनेवाली गाय के लिए एवं पोडआ शब्द सूखे गोवर की अग्नि के लिए आया है। चौथी विशेषता उन तत्सम संस्कृत शब्दों की है जिन के अर्थ संस्कृत में कुछ है और प्राकृत में कुछ । यहाँ कुछ शब्दों की तालिका दो जा रही है, जिस से उक्त कथन स्पष्ट हो जायगा । उच्चं नाभितलं १/८६ संस्कृत में उच्च शब्द का अर्थ ऊंचा, उन्नत और श्रेष्ठ है पर इस कोश में नाभि की गहराई के लिए आया है । उच्चारो विमलः १/९७ संस्कृत में उच्चार शब्द का अर्थ उच्चारण, कथन, विष्ठा और मल है, पर इस कोश में निर्मल अर्थ है । ___कलंको वंशः २/८ संस्कृत में कलंक शब्द का अर्थ चिह्न, धव्वा, दोष, अपवाद, दुर्नाम, लाञ्छन आदि है पर इस कोश में बांस के अर्थ में आया है। कमलो पिठरः २/५४ संस्कृत में कमल शब्द जल में उत्पन्न होनेवाले सुन्दर पुष्प के अर्थ में प्रसिद्ध है, पर इस कोश में इस का अर्थ वर्तन है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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