Book Title: Manik Vilas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 4
________________ जहां भमर परत हैं जामें शम दम शांति रस पानी ॥२॥जिन संस्तवन तरंग उठत है जहां नहीं भ्रमकीच निसानी । मोह महागिरि चूर करति है रत्न त्रय शुध पंथ ढलोनी ॥३॥ सुर नर मुनि खगादि पंछो जहं रमतहि चित प्रशांतिता ठानी। मानिक चित निर्मल स्नान करि फिर नहिं होत मलिन भविप्रानी ॥४॥ ४ पद-राग भारंग नया देश की ठुमरी ।। ज्यों तरुबर की छड्यां-तन धन जानारे भाई ॥ टेक ॥ घटत वढ़त, चपलावत चंचलक्षण में जात पलाई ॥ ज्यों० १॥ तूं तो ज्ञान रूप चिटुगुण घन यह पदल परजाई प्रकृति विरोधी ते रति ‘मानी यह बूढो चतुराई । २॥ या प्रसंग चहुंगति में भट को विषय जु विषफल खाई। तात मात

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