Book Title: Manik Vilas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ २ पद-राग होरी मैं॥ जो सुख चाहो निराकुल क्यों न भजो जिनवीर ॥ टेक ॥ आयु घटे छिन ही छिन तेरी ज्यों अंजुलिको नीर ॥ जो० १॥ मात तात सुत नारि सुजन कोई भीर परें नहीं सीर । अपनी लखि पोखे सो तेरो विनसि जायगो शरीर ॥ जो०२॥ वे प्रभू दोन द. याल जगत गुरु जानत हैं पर पीर । भाव सहित ध्यावें भवि मानिक पावें भवदधि तोर ॥ जो० ३॥ ३ पद-राग ठुमरी झझोटी में ॥ जिनवर चरण भक्ति वर गंगा ताहि भजो अवि नित सुखदानी ॥ टेक ॥ स्याद वाद हिमगिरिते उपजी मोक्ष महासागरहिं समानी ॥१॥ ज्ञान विराग रूप दोऊ ढाये संयम भाव मगर हितहानी । धर्म ध्यान

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 98