Book Title: Manidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Manidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi

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Page 5
________________ हमारी जिस विभाग क्रम से ग्रन्थं प्रकाशन की योजना प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर, बीकानेर आदि, अभय थी, लेखों-निबन्धों को प्राप्त करने के लिये बारम्बार प्रेरित या अ० बोकानेर हमारे अभय जैन ग्रन्थालय, वि० कोटाकरने पर भी थोडे से लेख आये और वे भी विलम्ब से। महो• विनयसागर संग्रह कोटा, धर्म-आगरा-विजयउन्हें योजनानुसार क्रमबद्ध प्रकाशित करने में पूर्ति के हेतु धर्मसूरि ज्ञानमन्दिर, आगरा, सेठिया अगरचन्दभैरूदान हमें हाथोंहाथ लिखकर प्रेस में देना पड़ा। इधर कलकत्ता सेठिया को लायब्ररी बीकानेर, लींबड़ीलीबड़ी का ज्ञानकी विषम परिस्थिति में हड़ताल, मुहर्रम, होली की छट्रियाँ भंडार, वृद्धि-जेसलमेर यतिवृद्धिचन्द्रजो का भंडार, डूंगर= और चुनाव के चक्कर के साथ साथ मुद्रण यंत्र की हड़ताल यतिडुगरसोजी का भंडार, हरि० लोहावट श्रीजिनहरिखराबी आदि कारगों से हमारी योजनानुसार दिये गये सागरसूरि ज्ञानभंडार लोहावट, क्षमाबीकानेर-उ० क्षमालेख नहीं छप सके और अन्त में वापस लाने पड़े। यद्यपि कल्याणजी का भंडार तथा बड़े उपाश्रय में स्थित बड़े इस ग्रन्य में कुछ पूर्वाचार्यों ओर गत शतक के दिवंगत ज्ञानभंडार में दस विभाग हैं जिनमें महिमा महिमाआचार्यो-मुनियों का परिचय तो हम दे पाये हैं पर खरतर भक्ति, महर=महरचन्दजी, दान-दानसागर भंडार आदि गच्छ की मूलाधार साध्वीमंडल जिसका हमें विशेष गौरव तथा कांतिछाणी = प्रवर्तक श्री कान्तिविजयजी का भंडार, है, उनके कुछ आये हुए लेख भी नहीं दे सके इस बात का छाणी आदि संक्षिप्त निर्देश, शोधकर्ताओं को थोड़ा ध्यान हमारे मन में बड़ा भारी खेद है । देने से समझ में आ जायेंगे। ___ इस ग्रन्थ में कुछ ठोस सामग्री जैसे-दीक्षा नन्दी इस महत्त्वपूर्ण श्लाघनीय कार्य सम्पादन के लिए सूची, तीर्थो के विकास में खरतरगच्छ का योगदान, श्रीविनयसागरजी अनेकशः धन्यवादाहं हैं। खरतरगच्छाचार्यो' द्वारा प्रतिबोधित गोत्र, अप्रकाशित अजमेर में श्रीजिनदत्तसूरि अष्टम शताब्दी के अवसर प्राचीन ऐतिहासिक काव्यादि अनेक महत्त्वपूर्ण निबन्ध पर हमारी नम्र प्रार्थना से पूज्य गुरुदेव सद्गत श्रीसहजातैयार होने पर भी नहीं दिये जा सके । आशा है पाठकगण नंदघनजी महाराज ने दादासाहब के लोकोत्तर व्यक्तित्व हमारी विवशता समझेगे। पर प्रकाश डालने वाला महत्त्वपूर्ण विस्तृत निबन्ध "अनुहमने इस ग्रन्थ में एक महत्त्वपूर्ण ठोस सोमनी दी है- भूति की आवाज' लिखा था, जो अब तक उनकी सारी खरतरगच्छ साहित्य सूची, जो दूसरे विभाग में है। यह रचनाओं को भाँति हो अप्रकाशित है, हमने इसमें देने के कार्य अपने आपमें एक बहुत बड़ा और गत ४० वर्षों से लिए प्रेसकापी भी तय्यार करायो था पर सीमित समय सम्पन्न श्रमसाध्यशोधपूर्ण कार्य है जिसके निर्माण में हमारे में अन्यान्य लेखों की भाँति वह भी अप्रकाशित रह गया । सैकड़ों ज्ञानभण्डार आदि के अवलोकन-नौंध का उपयोग श्रीमानचन्दजी भंडारी ने हमें कापरड़ाजी तीर्थ के सतर्कता के साथ किया गया है। मुद्रित, अमुद्रित के लिये कई ब्लाक, घंघाणी तोयं के चित्रादि के साथ कापरड़ाजी मु० १० लिखा है। रचनाओं को विषय वार विभक्त करके का इतिहास और भानाजी भंडारी का परिचयात्मक रचयिता और उनके गुरु का नाम, रचना समय, निर्देश के विस्तृत लेख भेजा था पर उपर्युक्त कारणों से चित्रों को साथ-साथ प्राप्तिस्थान के उल्लेख में स्थल संकोच वश प्रकाशित करके भी लेख नहीं दिया जा सका । इसी प्रकार कुछ संक्षिप्त संकेत व्यवहृत किये गये हैं, जिनका यहाँ दिशा- पूज्य मुनि महाराजों, साध्वीजी महाराज व अन्य विद्वानों सूचन करना समीचीन होगा। जैसे राप्राविप्र राजस्थान के लेखों तथा हमारी योजनान्तर्गत उपरि निर्दिष्ट ठोस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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