Book Title: Mangal Mantra Namokar Ek Anuchintan Author(s): Nemichandra Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 6
________________ ६ मगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन द्वारा परमपदमे स्थित पच उच्च आत्माओका अथवा यक्षादि शासन देवोका सत्कार किया जाये, वह मन्त्र है । इन तीनो व्युत्पत्तियोके द्वारा मन्त्र शब्दका अर्थ अवगत किया जा सकता है । णमोकार मन्त्र - यह नमस्कार मन्त्र है, इसमे समस्त पाप, मल और दुष्कर्मोंको भस्म करनेकी शक्ति है । वात यह है कि णमोकार मन्त्रमें उच्चरित ध्वनियोसे आत्मामे धन और ऋणात्मक दोनो प्रकारकी विद्युत् शक्तियाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे कर्मकलक भस्म हो जाता है । यही कारण है कि तीर्थंकर भगवान् भी विरक्त होते समय सर्वप्रथम इसी महामन्त्रका उच्चारण करते हैं तथा वैराग्यभावकी वृद्धिके लिए आये हुए लोकान्तिक देव भी इसी महामन्त्रका उच्चारण करते हैं । यह अनादि मन्त्र है, प्रत्येक तीर्थंकर के कल्पकाल मे इसका अस्तित्व रहता है । कालदोष से लुप्त हो जानेपर अन्य . लोगोको तीर्थंकरकी दिव्यध्वनि-द्वारा यह अवगत हो जाता है । इस अनुचिन्तनमे यह सिद्ध करनेका प्रयास किया गया है कि " णमोकार मन्त्र ही समस्त द्वादशाग जिनवाणीका सार है, इसमे समस्त श्रुतज्ञानकी अक्षर सस्या निहित है। जैन दर्शनके तत्त्व, पदार्थ, द्रव्य, गुण, पर्याय, नय, निक्षेप, आस्रव, बन्घ आदि इस मन्त्रमे विद्यमान है । समस्त मन्त्रशास्त्रकी उत्पत्ति इसी महामन्त्रसे हुई है । समस्त मन्त्रोकी मूलभूत मातृकाएँ इस महामन्त्र मे निम्नप्रकार वर्तमान हैं । मन्त्र पाठ • " णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं, णमो सव्व साहूण ॥ लोए विश्लेषरण ण + अ + म् + ओ + अ + र् + इ + ह् + अ + त् + आ + ण् + अ + ग् + अ + म् + ओ + स् + इ + द् + घ् + आ + ण् + अ + ण् + अ + म् + ओ + आ + इ + र् + इ + य् + आ + ण् + अ + अ + म् + ओ + उ + व् + अ + ज् + क् + आ + य् + ण् + आ +Page Navigation
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