Book Title: Mahavira Vani
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 9
________________ पुनश्च तीन वर्ष के बाद 'महावीर-वाणी' का तीसरा संस्करण प्रकाशित हो रहा है। ___इस बार 'महावीर-वाणी' में सम्पादक ने कुछ संशोधन किए हैं। 'विवाद-सूत्र' निकालकर 'जाति-मद-निवारण सूत्र' दिए गए हैं तथा कुछ गाथाएं, निकाल दी गई हैं। पाठकों की सुविधा के लिए पुस्तक का हिन्दी अनुवादअंश अलग से छापा गया है। प्राकृत और संस्कृत में रुचि न रखने वालों के लिए यह संस्करण उपयोगी होगा। पुस्तक पं० परमेष्ठीदास जी के जैनेन्द्र प्रेस में छपी है। उनका जो सम्बन्ध है वह व्यावसायिकता से ऊपर है। उन्होंने छपाई के सम्बन्ध में पर्याप्त दिलचस्पी ली है और शुद्ध छपाई का ध्यान रखा है। हम छपाई के काम को झाडू देने का काम समझते हैं। कितना भी बारीकी से देखा जाय, कुछ न कुछ गलतियाँ-अशुद्धियाँ रह जाती हैं। जो हो; भाई परमेष्ठीदास जी को धन्यवाद देना अपनी ही प्रशंसा करने जैसा होगा। वर्धा १५ मार्च, ५३ -जमनालाल जैन [६] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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