Book Title: Mahadev Stotram
Author(s): Hemchandracharya, Sushilmuni
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi

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Page 156
________________ पद्यानुवाद - प्रहन का आदि प्रकार ही आदि धर्म को कहता है , तथा आदि मुक्ति को यही प्रादि अकार दिखाता है। प्रात्मस्वरूप में परम ज्ञान उत्पन्न करता है , इसलिये अर्हन पद का प्रादिभूत प्रकार कहा है ॥ ४० ।। शब्दार्थ_अकारः 'अर्हन' पद के आदि का प्रकाररूप वर्ण । पादिधर्मस्य=पादि धर्म का । च = तथा । मोक्षस्य मोक्ष का । प्रदेशकः =प्रतिपादन करने वाला है । तथा, स्वरूपं - अरिहन्त के स्वरूपभूत । परमज्ञानं सर्वोत्कृष्ट ज्ञान-केवलज्ञान आदि ज्ञान है । तेन= इसलिये। अकारः= अर्हन् पद का आदिभूत प्रकार । प्रोच्यते = कहा जाता है। श्लोकार्थ - __ अर्हन पद का प्रकार (अक्षर) आदि धर्म को कहता है, आदि मोक्ष को दिखलाता है और आत्मस्वरूप में परमज्ञान अर्थात् केवलज्ञान को उत्पन्न करने वाला है । इसलिये यह अर्हन् पद का प्रादिभूत प्रकार कहा जाता है। भावार्थ - पूर्व श्लोक में 'अर्ह' अर्थात् अर्हन् पद में 'अ' विष्णु, श्रीमहादेवस्तोत्रम्-११६ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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