Book Title: Mahadev Stotram
Author(s): Hemchandracharya, Sushilmuni
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi

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Page 162
________________ कर्मों का भी नाश किया ऐसे श्रर्हन् सुदेव हैं, इसलिये श्रर्हन् पद महीं कहा ही हकार वर्ण है ॥ ४२ ॥ शब्दार्थ - येन = चूंकि । रागाः = विषयासक्तियों का । च तथा । द्वेषाः प्रनिष्ट विषय में प्रीतियों का । हताः = विनाश किये । च = तथा । मोहपरीषहाः = मोह यानी ममता तथा क्षुधा आदि बाईस परीषह - इन सभी का । हताः = विनाश किया है तथा सहन किये हैं । तथा कर्मारिण = शुभ तथा अशुभ कर्मों का । हतानि =क्षय-विनाश किया है । तेन= इसलिये राग-द्वेषादि कर्मों का विनाश करने के कारण । हकारः=हकार अर्थात् अर्हन् पद में हकाररूप वर्ण अक्षर । प्रोच्यते = कहा जाता है । श्लोकार्थ - जिसने राग और द्वेष का विनाश किया है, मोह और परीषह का विनाश किया है, तथा (आठों ) कर्मों का विनाश किया है, ऐसे अर्हन् देव हैं । इसलिये अर्हन् पद में हकार रूप वर्ण (अक्षर) कहा जाता है । भावार्थ - अर्हन् पद में हकार के स्वरूप की व्याख्या कर रहे हैं। पूर्व के श्लोकों में यह स्पष्ट कर चुके हैं कि-'अ' Jain Education International श्री महादेवस्तोत्रम् - १२५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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