Book Title: Mahadev Stotram
Author(s): Hemchandracharya, Sushilmuni
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi

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Page 177
________________ को मोक्ष के रागी बनाने वाले, भव्यात्माओं के अन्तःकरण में मोक्षमार्ग के पथिक बनने की वृत्ति को जगाने वाले और सिद्धि की साधना में इसी वृत्ति को तल्लीन-एकतान बनाने के लिए सहायक होने वाले महान उपकारी सिद्धभगवन्त की आराधना द्वारा हम भी अरिहन्त बनकर सिद्ध बनें और सिद्धस्थान में सिद्धभगवन्तों का सदा सर्वदा सान्निध्य प्राप्त करें। ['श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन' (लेखक-पूज्याचार्य श्रीमद्विजयसुशीलसूरिजी म०) ग्रन्थ में से उद्धृत] हित-शिक्षा ज मेरा मेरा क्या करे, तेरा नहीं संसार । मेरा मेरा छोड़ दे, हो जावे भव-पार ॥१॥ मैं मैं नित बकरा करे, मरे कसाई हाथ । रे! तू मैं-मैं क्यों करे ? होगा अन्त अनाथ ॥ २॥ मैं नहीं मेरा भी नहीं, प्रकटे जो यह भाव । जग जंजाल रहे न फिर, हो तिरने का दाव ॥३॥ ['श्रीप्राध्यात्मिक ज्ञान संग्रह से'] Jain Education International श्रीमहादेवस्तोत्रम् । १४० www.jainelibrary.org

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