Book Title: Mahadev Stotram
Author(s): Hemchandracharya, Sushilmuni
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi

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Page 179
________________ • हितोपदेश न मनाश्री, सम्पत्ति में आनन्द वह तो पूर्व पुण्य का ह्रास कर रही है । , विपत्ति श्राने पर खेद न मनाश्रो वह तो पूर्व संचित पापों को खपा रही है । ? वास्तव में, सम्पत्ति कोई सम्पत्ति नहीं प्रभु की स्मृति ही सच्ची सम्पत्ति है । * विपत्ति कोई विपत्ति नहीं प्रभु की विस्मृति ही विपत्ति है । यतना पूर्वक चलो, यतना पूर्वक ठहरो यतना पूर्वक बैठो, यतना पूर्वक सोश्रो, यतना पूर्वक खाश्रो, यतना पूर्वक बोलो । यतना पूर्वक जीवन जीने वाले को पाप कर्म का बंध नहीं होता । [ 'श्री प्राध्यात्मिक ज्ञान संग्रह' में से उद्धृत ] Jain Education International श्रीमहादेवस्तोत्रम् - १४२ For Private & Personal Use Only , www.jainelibrary.org

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