Book Title: Mahadev Stotram
Author(s): Hemchandracharya, Sushilmuni
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandiram Sirohi

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Page 166
________________ पाप को जानकर, सन्तोष अर्थात् उपशम से युक्त हुए और अतिशय के प्रभाव से दिव्य समवसरण में अशोकवृक्ष, सुरपुष्पवृष्टि, दिव्यध्वनि चामर, सिंहासन, भामण्डल, दुन्दुभि एवं छत्र इन आठ प्रातिहार्यों से विराजित हुए । इसलिये अर्हन् पद में रहा हुआ नकार (न्) कहा जाता है । अर्थात्---अर्हन् पद में रहा हुआ नकार श्रीतीर्थंकर परमात्मा के पुण्य और पाप के तत्त्वज्ञान, उपशम तथा अष्ट प्रातिहार्यों का सूचक है || ४३ ॥ [ ४४ ] अवतरणिका - उक्तप्रकारेण अन्न व शब्दतोऽर्थतो गुणतश्चेत्युपपाद्य स्वस्य ताटस्थ्यं व्यञ्जयन्नुपसंजिहीर्षुः श्रीवीतरागदेवं नमस्करोति--- मूलद्यम् भवबीजाइड, कुरजनना, रागाद्याः क्षयमुपगता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा, हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥ अन्वयः ― Woode 'यस्य, भवबीजाङ कुरजननाः, Jain Education International श्रीमहादेवस्तोत्रम् - १२६ For Private & Personal Use Only रागाद्याः, क्षयं, www.jainelibrary.org

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