Book Title: Mahadani Bhamashah Author(s): Prem Kishor Patakha Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala View full book textPage 2
________________ सम्पादकीय भामाशाह राणा उदयसिंह के समय से ही राज्य का दीवान एवं प्रधानमंत्री था। हल्दी घाटी के युद्ध (१५७६ ई.) में पराजित हो कर स्वतंत्रता प्रेमी और स्वाभिमानी राणा प्रताप जंगलों और पहाड़ों में भटकने लगे थे। मुगल सेना ने उन्हें चैन न लेने दिया अतएव सब ओर से निराश और हताश हो कर उन्होंने स्वदेश का परित्याग करके अन्यत्र चले जाने का संकल्प किया। इस बीच स्वदेशभक्त एवं स्वामीभक्त भामाशाह चुप नहीं बैठा था। ठीक जिस समय राणा भरे मन से मेवाड़ की सीमा से विदाई ले रहा था भामाशाह आ पहुंचा और मार्ग रोक कर खड़ा हो गया। भामाशाह ने देशोद्वार के प्रयत्न के लिए उत्साहित किया। राणा ने कहा मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं और न ही सैनिक एवं साथी, किस प्रकार यह प्रयत्न करूं। भामाशाह ने तुरन्त विफुल धन उनके चरणों में समर्पित कर दिया। इतना धन दिया कि जिससे २५ हजार सैनिकों का बारह वर्षों तक निर्वाह हो सकता था। इस अप्रतिम उदारता एवं अप्रत्याशित सहायता पर राणा ने हर्ष विभोर हो कर भामा शाह को आलिंगनबन कर लिया। राणा ने पुनः सैनिकों को जुटाकर मुगलों को देश से बाहर करने में जुट गये तथा पूरे मेवाड़ को स्वतंत्र किया। भामाशाह की उदारता एवं वीरता को देखकर राणा जी ने दानवीर शिरोमणी भामाशाह का बड़ा सम्मान किया। अपनी इस अपूर्व एवं उदार सहायता के कारण भामाशाह मेवाड़ का उद्धारकर्ता कहलाये। यह कृति भी देश के रक्षक दानवीर भामाशाह को समर्पित। धर्मचंद शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य सम्पादक : धर्मचंद शास्त्री लेखक : प्रेम किशोर पटाखा चित्रकार : बने सिंह प्रकाशक : आचार्य धर्म श्रुत ग्रन्थमाला प्राप्ति स्थान : जैन मन्दिर, गुलाब वाटिका, लोनी रोड (उ.प्र.) वर्ष ३ अंक २१ मूल्य ६/ सन् १९९१ जैन चित्र कथाओं के प्रकाशन के इस पावन पुनीत महायज्ञ में संस्था को सहयोग प्रदान करें। परम संरक्षक : १११११ संरक्षक : ५००१ आजीवन : १५०१Page Navigation
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