Book Title: Mahadani Bhamashah
Author(s): Prem Kishor Patakha
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 13
________________ नहीं मेरे बेटे, कभी-कभी पुराने दिनों की यादें ताजा हो जाती है। हमारे पुराने दिन फिर लौटेंगे तुम मेवाड़ की राजमाता हो और एक दिन स्वतंत्रता के गीत इस धरती पर जरूर गूजेंगे। महादानी भामाशाह | इसी बीच, शक्तिसिंह आया पिता जी को भी भूख लगती होगी उन्हें भी राजमहलों की याद आती होगी अपने इस संकटकाल को वे कैसे हंस हंसकर काट रहे है, फिर मां, हम क्यों पीछे रहें। हाँ बेटे, उसी स्वतंत्रता की वह गूंज है, आज हमें सूखे सागपातों की रोटियां खाने पर मजबूर कर रही है। भाभी, जल्दी यहां से चलने की तैयारी करो ऐसा क्या हुआ, शक्तिसिंह इस तरह की दौड़-भाग तो अपना जीवन है । ठीक है बेटा, आखिर तुम महाराणा की ही सन्तान हो, तुम्हें कोई नहीं झुका सकता। शत्रु को हमारे इस गुप्त स्थान का पता लग गया है ।

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