Book Title: Mahabandho Part 4 Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 7
________________ महाबन्ध अपने मौलिक रूप में उपस्थित हों या उनके छायाचित्र आजकल प्रतियों के छायाचित्र या सूक्ष्मचित्रावली (माइक्रो फिल्म) बड़ी आसानी और किफायत से लिये जा सकते हैं। सूक्ष्म चित्रावली को पढ़ने के लिए प्रतिबिम्बक यन्त्र (प्रोजेक्टर मशीन) भी आज बड़ी सस्ती मिलने लगी है-केवल चार-पाँच सौ रुपये में। लिपि का अज्ञान कोई बड़ी समस्या नहीं है। सम्पादक स्वयं थोड़े से प्रयत्न व अभ्यास से अल्पकाल में अपेक्षित लिपि को सीख सकता है और अपने सम्पादन को सोलहों आने प्रामाणिक बना सकता है; यदि उसे यथोचित सुविधाएँ दे दी जायें। पं० फूलचन्द्रजी शास्त्री ने प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन व अनुवाद में जो विद्वत्तापूर्ण प्रयास किया है, तथा ज्ञानपीठ के कार्यकर्ताओं ने जो सुन्दर प्रकाशन का उद्योग किया है, उसके लिए वे हमारे धन्यवाद के पात्र हैं। हमें भरोसा है कि उनके प्रयत्न से इस ग्रन्थ का शेष भाग भी शीघ्र ही प्रकाशित हो सकेगा। हीरालाल जैन आ.ने. उपाध्ये ग्रन्थमाला सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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