Book Title: Madan Shreshthi Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Sukhlal Dagduram Vakhari

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Page 4
________________ परिचय धर्मेण कुलप्रसूतिः धर्मेण च दिव्यरूपसंप्राप्तिः। धर्मेण धनसमृद्धिः धर्मेण सुविस्तृता कीर्तिः ॥ स्थानकवासी जनसमाजमें ऐसा कौन मनुष्य होगा जोकि शास्त्रोद्धारक जैनदिवाकर जैनाचार्य बालब्रह्मचारी स्व. पूज्यश्री अमोलक ऋषिजी म. सा. की जीवनीसे परिचित न हो। इसलिये यहांपर पूज्य श्रीका जीवनचरित्र न देते हुये उनके अतिपरिश्रमद्वारा जनताके हितार्थ कवितारूप में लिखाहुवा मदनश्रेष्टीनामक चरित्र जोकि मनुष्य जीवनके सांसारिक विकासकेलिये शिक्षाप्रद है; जिससेकि “ अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतंकर्म शुभाशुभम् " याने कियेहुए शुभाशुभ कर्म मनुष्यको अवश्य भोगने पडते हैं यह शिक्षा मिलती है । उसी मदन नामक शेठका संक्षिप्त जीवनपरिचय प्रारम्भमें सिर्फ पाठकोंकी कुछ सुविधाकेलिये लिख रहे हैं। अयोध्यानामकी नगरीमें परिजन आदिसे परिपूर्ण वसुदत्तनामके सेठ रहाकरते थे; उनके चार पुत्र थे. जिनमें से सबसे छोटे पुत्रका नाम मदन था । पूर्वोपार्जितपुण्यके प्रतापसे एकत्रित अतुलसम्पत्तिके नशेमें सेठजी इतने मस्त थे कि किधर सूर्य उदय होता है और किधर अस्त होता है यहभी उनको मालूम नहीं होता था । किन्तु " क्षीणे पुण्ये विधीयमाने च दुर्नये श्रीर्याति " इस उक्तानुसार कुछसमयकेबाद सेठजीको “ सुखान्ते दुःखम्, दुःखान्ते सुखम् " इस वाक्यको ध्यानमें रखकर सन्तानकेसहित देश छोडकर विदेशमें जाना पड़ा; वहां पहुंचनेकेबाद अपरिचितताके कारण शांतिदायकस्थान प्राप्त न होनेपर दरिद्रतासे अतिपीडितहो एकसमय सेठजीके चारोंपुत्र काष्टभार लेनेकेलिये

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